समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के साथ राजनीति विज्ञान के संबंधों की विवेचना करें।
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समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के साथ राजनीति विज्ञान के संबंधों की विवेचना करें। Or, अन्तर-अनुशासनात्मक दृष्टिकोण से क्या समझते हैं? राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र से सम्बन्ध बताइये।

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किसी भी विषय की सफलता उसके स्वतंत्र अनुशासन के रूप में मान्यता पर निर्भर करती है। एक स्वतंत्र अनुशासन के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि उसका विषय-क्षेत्र स्पष्ट एवं निश्चित हो।

उसकी अपनी अध्ययन पद्धति हो या उसके पास नये-नये क्षेत्रों में शोध की सम्भावनाएँ हों। वह एक अनुभवात्मक, विकसित तथा रचनात्मक सिद्धान्त से संचालित होता हो।

राजनीतिशास्त्र एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र अनुशासन के रूप में विकसित होने लगा है। फिर भी, यह कहना गलत होगा कि अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध स्थापित किये बिना ही राजनीतिशास्त्र ने आज इतना विकास कर लिया है।

सिजविक ने भी कहा है कि यदि हमें किसी विषय या विज्ञान का अन्वेषण करना है तो यह अत्यन्त लाभदायक होगा कि हम उस विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध मालूम करें, फिर, यह जानने का प्रयास करें कि उक्त से राजनीतिशास्त्र के अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण का आभास मिल जाता है।

गार्नर ने कहा है कि हम दूसरे सहायक विज्ञानों का यथावत् ज्ञान प्राप्त किये बिना राज्य-विज्ञान एवं राज्य का पूर्ण ज्ञान ठीक उसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते जिस प्रकार गणित के बिना यन्त्र विज्ञान और रसायनशास्त्र के बिना जीव विज्ञान का यथावत् ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।

पॉल जेनेट ने भी कहा है कि राजनीतिशास्त्र का अन्य शास्त्रों से गहरा सम्बन्ध है। इसे ही अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण कहते हैं।

समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र (Sociology and Political Science)

समाज शास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन का शास्त्र है। यह समाज की उत्पत्ति, विकास, संगठन और उसके लक्ष्य का अध्ययन करता है।

यह रीति-रिवाज, विश्वास, संस्कृति तथा सभ्यता के विकास का वर्णन करता है। गेटेल के अनुसार, समाजशास्त्र तो एक सामान्य सामाजिक शास्त्र है।

यह सामाजिक समुदायों पर विचार करता है और सम्पूर्ण सामाजिक जीवन सम्बन्धी नियमों और तथ्यों की खोज करने की कोशिश करता है।

रेट्जनहॉफर ने कहा है कि राज्य एक सामाजिक वस्तु अथवा संगठन है, वह अपनी प्रारंभिक स्थिति में एक राजनीतिक संस्था की अपेक्षा सामाजिक संस्था ही अधिक होती है।

यह वास्तव में सत्य ही है कि राजनीतिक तथ्यों का आधार सामाजिक तथ्यों में है और यदि राज्य विज्ञान या राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र से भिन्न है।

तो वह इसी कारण से कि उसके विस्तृत क्षेत्र के समुचित विवेचन के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है इसलिए नहीं कि राजनीतिशास्त्र, तथा समाजशास्त्र के बीच कोई विभाजन रेखा है।

समाजशास्त्र में मनुष्य की राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रगति का विवरण होता है। राजनीति शास्त्र मनुष्य की राजनीति उन्नति से मुख्यतया सम्बन्धित है।

चूंकि राजनीतिक तथ्य सामाजिक तथ्यों का केवल एक भाग है, अतः समाजशास्त्र की अपेक्षा राजनीति शास्त्र का विषय संकुचित है।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र सब सामाजिक शास्त्रों की जननी है और राजनीतिशास्त्र केवल उसकी एक शाखा मात्र।

चाहे समाज शास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है, फिर भी दोनों का क्षेत्र एक दूसरे से पृथक है।

इसलिए प्रोफेसर गिडिंग्स ने कहा है कि आधुनिक काल में राजनीति शास्त्र ने जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, वह यह है कि उसने मालूम कर लिया है कि उसके अध्ययन क्षेत्र की सीमा वही नहीं है जो समाज के अध्ययन की ओर दोनों के क्षेत्र अलग किए जा सकते हैं।

समाज शास्त्र मुख्यतया समाज के अध्ययन और राजनीति-शास्त्र राज्य की उत्पत्ति, विकास तथा आधुनिक रूप से सम्बन्धित है।

डाक्टर गार्नर लिखते हैं कि राज्य की स्थापना से पूर्व मानव समाज की संस्थाओं और उसके जीवन का अध्ययन इतिहास एवं समाजशास्त्र का विषय है। राजनीतिशास्त्र का उससे कोई सम्बन्ध नहीं।

राजनीति शास्त्र का समाज संगठन के केवल एक रूप से सम्बन्ध है और वह है राज्य। समाज शास्त्र मानव समाज की संस्थाओं से सम्पर्क रखता है।

राजनीति शास्त्र मानव को एक राजनीतिक प्राणी मानकर अपना काम प्रारम्भ करता है, वह समाज शास्त्र की तरह इस बात की व्याख्या नहीं करता है कि वह क्यों और कैसे राजनीतिक प्राणी बन गया।

राजनीति शास्त्र राज्य और सरकार से मुख्यतया सम्बन्धित है। वह राज्य के बनने से पूर्व समाज की स्थिति का अध्ययन नहीं करता।

गिलक्राइस्ट के अनुसार समाज शास्त्र समाज की आधारभूत घटनाओं का अध्ययन करता है। आधुनिक सामाजिक संगठन का विश्लेषण करके भविष्य के आदर्श सामाजिक जीवन की कल्पना भी इसी के अन्दर शामिल है।

समाज शास्त्र मानव जीवन के आरम्भ से लेकर अन्त तक अध्ययन करता है। वह राज्य के बनने से पहले मनुष्य की हालत का अध्ययन करता है और राज्य के बनने के पश्चात् भी मनुष्य की दशा का अध्ययन इसके अन्तर्गत आ जाता है।

परन्तु राजनीति शास्त्र राज्य के बनने से पूर्व मानव समाज से संबंधित नहीं है। राजनीतिशास्त्र का अध्ययन राज्य के बनने के पश्चात आरम्भ होता है।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि समाज शास्त्र मानव जाति के संगठित तथा असंगठित, दोनों युगों का है परन्तु राजनीतिशास्त्र केवल संगठित युग का ही अध्ययन करता है जो कि राज्य के बनने के बाद आरम्भ होता है।

गार्नर के अनुसार, हम समाजशास्त्र में व्यक्ति को केवल एक प्राणी अथवा चेतन सत्ता की तरह ही नहीं, बल्कि एक पड़ोसी, एक नागरिक, एक सहकर्मी संक्षेप में एक सामाजिक जीवन के रूप में अध्ययन करते हैं।

जिसमें राजनीतिक चेतना काफी दर्जे तक प्रकट हो चुकी हो और जो राजनीतिक रूप से संगठित हो गया हो।

समाजशास्त्र वर्णनात्मक है और राजनीति शास्त्र वर्णनात्मक न होकर आदर्शवादी है। यह शास्त्र समाज की उत्पत्ति, विकास तथा आधुनिक रूप के विषय में विस्तृत वर्णन हमारे सामने पेश करता है, परन्तु उनसे कोई परिणाम नहीं निकलता।

इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का वर्णन करता है परन्तु अच्छी और बुरी घटनाओं में पहचान नहीं करता। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह शास्त्र शिक्षाप्रद नहीं है।

इसके विरूद्ध राजनीति शास्त्र घटनाओं का वर्णन केवल कुछ शिक्षा देने के लिए ही करता है, क्योंकि राजनीति शास्त्र का उद्देश्य एक आदर्श नागरिक का निर्माण करना है।

चाहे दोनों शास्त्रों का क्षेत्र भिन्न-भिन्न है फिर भी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र से राज्य के संगठन, कार्यों और आधुनिक स्वरूप के विषय में ज्ञान प्राप्त करता है और राजनीतिशास्त्र समाजशास्त्र से समाज की उत्पत्ति, विकास तथा सामाजिक नियमों के विषय में कुछ ज्ञान प्राप्त करता है।

इसलिए प्रोफेसर गिडिंग्स का कथन है कि समाज शास्त्र के प्राथमिक सिद्धान्तों से अनभिज्ञ लोगों को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना वैसा ही निरर्थक है।

जैसा न्यूटन द्वारा बताए हुए गति के नियमों को न जानने वाले व्यक्ति को ज्योतिष पढ़ाना। इसलिए एक राजनीतिज्ञ को समाज शास्त्र और एक समाज शास्त्री को राजनीति शास्त्र का उत्तम ज्ञान होना चाहिए।

राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र (Political Science and Economics)

राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ संबंध जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि दोनों से हमारा क्या अभिप्राय है।

राजनीति शास्त्र वास्तव में राज्य और सरकार का विज्ञान है यह पहले ही काफी स्पष्ट किया जा चुका है। जहाँ तक अर्थशास्त्र का संबंध है, हम कह सकते हैं कि यह सम्पत्ति का शास्त्र है।

इसका सम्बन्ध उत्पादन, वितरण, उपभोग तथा विनिमय से है। हमें यह मानना पड़ा कि मनुष्य के आर्थिक और राजनीतिक पहलूओं में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है।

दोनों शास्त्रों का उद्देश्य मनुष्य की भलाई है। सरकार और राज्य सरकार के बिना समाज में अशान्ति फैल जाएगी और अराजकता में कोई भी आर्थिक व्यवस्था नहीं टिक सकती है।

इसलिए प्राचीन राजनीतिज्ञों ने दोनों शास्त्रों को अभिन्न बताया। प्राचीन यूनानी लेखकों ने दोनों शास्त्रों को एक माना और उन्होंने अर्थशास्त्रों को राजनीतिक अर्थ-व्यवस्था का नाम दिया।

जिसकी परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है, यह राज्य के लिए राजस्व जुटाने की एक कला है।

अर्थशास्त्र एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान के रूप में (Economics as an Independent Social Science)

उन्नीसवीं शताब्दी में एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप या नियमन को अनुचित बताया और उसने अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से अलग किया। 

बीसवीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से अलग एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान सिद्ध करने का यत्न किया।

उदाहरणस्वरूप, महान अर्थशास्त्री मार्शल ने लिखा है, अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यापार में मनुष्य का अध्ययन है। वह व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के उस क्षेत्र का अध्ययन करता है जो अच्छे जीवन की आवश्यकताओं को जुटाने और उसके सदुपयोग से संबंधित है।

अर्थशास्त्र हम कृषि उद्योग और वित्त का गहरा अध्ययन करते हैं।

अर्थशास्त्र का राजनीति शास्त्र पर प्रभाव (Influence of Economics on Political Science)

यद्यपि बीसवीं शताब्दी में अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से स्वतंत्र विज्ञान मान लिया गया परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि दोनों में कोई सम्बन्ध ही नहीं है।

वास्तव में देखा जाय तो बीसवी शताब्दी में कल्याणकारी राज्य ने दोनों शास्त्रों की परस्पर निर्भरता का जितना स्पष्ट किया है।

उतना किसी और धारणा ने नहीं किया। आधुनिक राज्य की मुख्य समस्यायें आर्थिक ही हैं।

यदि हम प्राचीन इतिहास का भी अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि आर्थिक स्थितियों ने किस प्रकार मनुष्य की राजनीतिक दशाओं को प्रभावित किया।

जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में फासिज्म का उदय आर्थिक संकट के कारण हुआ।

चीन और भारत के आधुनिक झगड़े का मुख्य कारण आर्थिक ही है क्योंकि चीन हमारे आर्थिक प्रगति को सहन नहीं कर सकता और दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा अफ्रीका में हमारे माल की बिक्री को समाप्त करना चाहता है।

इसलिए उसका भारत से झगड़ा अनिवार्य हो गया। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के कारण भी मुख्यतया आर्थिक ही थे जिन्होंने सब देशों की राजनीति को प्रभावित किया।

आर्थिक परिस्थितियाँ प्रत्येक देश की विदेश नीति को भी प्रभावित करती हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप के अनेक देशों तथा यूनान को अमेरिका से आर्थिक सहायता लेनी पड़ी।

इसलिए उसकी विदेश नीति अमेरिका के क्रूर नीति से प्रभावित हुईं। आजकल जो अमेरिका का आर्थिक साम्राज्यवाद संसार के अनेक देशों में चल रहा है, उसने विश्व की राजनीति को विशेष रूप से प्रभावित किया है।

राजनीति का अर्थशास्त्र पर प्रभाव (Influence of Politics on Economics)

जहाँ आर्थिक दशाओं का राजनीति पर प्रभाव पड़ता है, वहाँ सरकार की नीतियों का भी देश की आर्थिक व्यवस्था पर भी विनिमय की दर; बैंक-पद्धति टेलीफोन और डाक की सुविधाएँ, परमिट तथा राशन पद्धति, माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधाएँ, सीमा शुल्क, इत्यादि का भी अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है।

सरकार का उत्पादन, वितरण, खपत, वित्त इत्यादि पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। सरकार अपने उद्योगों को संरक्षण देती है, और बाहर के माल पर अधिक सीमा शुल्क लगाती है।

ताकि अपना माल देश में सस्ता बिके, उसकी खपत बढ़े और देश का धन विदेशों को अधिक न जाय। 

सरकार का मुद्रा तथा नोट, नाप-तौल और लेन-देन पर नियंत्रण रहता है। सरकार को मजदूरों तथा पूँजीपतियों के झगड़ों का निर्णय करना पड़ता है।

यदि किसी देश में समाजवादी सरकार है तो उसकी निजी सम्पत्ति और पूँजी की तरफ और नीति होगी, और यदि पूँजीवादी सरकार है।

तो उसकी नीति और होगी अर्थात् दोनों प्रकार की सरकारों की भिन्न-भिन्न नीतियाँ होंगी। क्योंकि सरकार की राष्ट्रीयकरण की नीति का भी अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ता है।

इसी तरह सरकार कीमतों को बढ़ने से रोकती है और उत्पादन को बढ़ावा देती है। भारत सरकार ने 1947 ई. के बँटवारे के बाद उत्पादन को बढ़ाने के लिए योजनाएँ बनायीं और बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाए।

हमारी सरकार ने कृषि की उन्नति के लिए उनके बाँध बनवाए, नहरें निकाली, ट्यूबवेल लगवाए तथा ऋण दिए, असंख्य कारखाने खोले गये।

दोनों शास्त्रों में भेद (Distinction between two sciences)

चाहे राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर अधिक निर्भर है, फिर भी वे दोनों पृथक सामाजिक विज्ञान हैं।

राजनीतिशास्त्र में हम केवल सरकार और राज्य का अध्ययन करते हैं और उत्पादन, वितरण, खपत तथा विनिमय का अध्ययन नहीं करते जो कि अर्थशास्त्र का विषय है।

इसी प्रकार अर्थशास्त्र में हम सरकार और राज्य का अध्ययन नहीं करते। इसीलिए दोनों के विषय अलग-अलग हैं।

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