भारत में परिवहन के मुख्य साधन स्थल, जल और वायु हैं। स्थल परिवहन के अंतर्गत सड़क, रेलवे और पाइप लाइन; जल परिवहन के अंतर्गत अंतःस्थलीय और सागरीय व महासागरीय मार्ग; तथा वायु परिवहन के अंतर्गत राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन आते हैं।
इनमें सड़क परिवहन सर्वप्रमुख है, जिससे प्रतिवर्ष 85 प्रतिशत यात्री तथा 70 प्रतिशत भार यातायात का परिवहन किया जाता है।
जल परिवहन ईंधन दक्ष तथा पारिस्थितिकी अनुकूल है तथा यह सस्ता साधन है और भारी तथा स्थूल सामग्री के परिवहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
महासागरीय मार्ग विदेशी व्यापार के लिए सर्वप्रमुख है; भारत में भार के अनुसार 95% और मूल्य के अनुसार 70% विदेशी व्यापार इस मार्ग से होता है।
भारत में परिवहन के साधन के विकास को प्राकृतिक, आर्थिक और राजनैतिक कारकों ने प्रभावित किया है—
i. प्राकृतिक कारक (Physical factors) : मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण आसान और सस्ता होता है, जबकि पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में कठिन एवं महँगा होता है।
इसलिए मैदानी क्षेत्रों की सड़कें घनत्व और गुणवत्ता में अधिक ऊँचे, बरसाती तथा वनीय क्षेत्रों की तुलना में बढ़िया होती है।
यही कारण है कि देश के उत्तरी मैदान में सड़क और रेलमार्ग का सघन जाल मिलता है, जबकि हिमालय, उ०पू० भारत और प० राजस्थान में इनका विरल जाल है।
ii. आर्थिक कारक (Economic factors) : आर्थिक दृष्टि से विकसित क्षेत्रों में परिवहन का सघन जाल मिलता है; क्योंकि इससे उत्पादक और उपभोक्ता क्षेत्रों के बीच सामानों का आदान-प्रदान होता है।
भारत के मैदानी, व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्रों में रेल और सड़क दोनों मार्ग सघन है।
समुद्रतटीय क्षेत्रों में महाराष्ट्र-गुजरात के सूतीवस्त्रोद्योग, केरल के मसाले और पं० बंगाल के जूट उद्योग के कारण समुद्री मार्ग का भी विकास हुआ है और इन्हें आंतरिक क्षेत्र से जोड़ने के लिए रेल और सड़क मार्ग का भी।
iii. राजनैतिक कारक (Political factors) : ब्रिटिश शासन काल में रेलों का विकास प्रमुख नगरों को जोड़ने और शासन की सुविधा के लिए किया गया, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के सर्वांगीण विकास के लिए रेल और सड़क मार्ग का विकास हुआ।