उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए। Udyogon Ke Sthaniykaran Ke Karkon Ki Vivechna Kijiye
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उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए। Udyogon Ke Sthaniykaran Ke Karkon Ki Vivechna Kijiye

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उद्योगों के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं—

i. कच्चा माल (Raw Materials)— सभी उद्योगों में कच्चा-माल का प्रयोग होता है, जिसे सस्ते दर पर उपलब्ध होना चाहिए।

भारी वजन, सस्ते मूल्य एवं भार ह्रासमूलक कच्चा माल पर आधारित उद्योग कच्चा-माल के स्रोत के समीप ही स्थित होते हैं।

जैसे— लोहा-इस्पात, सीमेंट और चीनी उद्योग।

ii. बाजार (Markets)— उद्योगों से उत्पादित माल की माँग और वहाँ के निवासियों की क्रयशक्ति को बाजार कहा जाता है।

यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया वैश्विक बाजार हैं। द० पू० एशिया के घने बसे क्षेत्र भी व्यापक बाजार हैं। ये सभी उद्योगों की स्थापना को सहायता पहुँचाते हैं।

iii. श्रम (Labour)— उद्योगों की अवस्थिति के लिए कुशल एवं अकुशल श्रमिक भी आवश्यक हैं। मुम्बई और अहमदाबाद के सूती वस्त्रोद्योग मुख्यतः बिहार और उत्तर प्रदेश से आये श्रमिकों पर आधारित हैं।

स्विट्जरलैंड का घड़ी उद्योग और सूरत का हीरा तराशने का उद्योग कुशल श्रमिकों पर आश्रित हैं।

iv. ऊर्जा के स्रोत (Sources of power)— जिन उद्योगों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वे ऊर्जा के स्रोतों के समीप ही लगाये जाते हैं, जैसे पिट्सवर्ग और जमशेदपुर में लोहा-इस्पात उद्योग।

आजकल विद्युत-ग्रिड द्वारा जल विद्युत और पाइपलाइन द्वारा खनिज तेल दूर तक पहुँच जाते हैं और इनके उत्पादन के समीप उद्योगों को लगाना आवश्यक नहीं है।

v. जल (Water)— सूती वस्त्रोद्योग में कपड़ा की धुलाई, रंगाई इत्यादि के लिए तथा लोहा-इस्पात उद्योग में प्रक्रमण, भाप निर्माण और लोहे को ठंढा करने के लिए जल आवश्यक है। अतः इनकी स्थापना जल स्रोत के समीप ही होती है।

vi. परिवहन एवं संचार (Transport and Communication)– कच्चे-माल को कारखाने तक लाने और तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ आवश्यक हैं।

vii. प्रबंधन (Management)— यह जानना आवश्यक है कि उद्योग के लिए चुने गए स्थल अच्छे प्रबंधकों को आकर्षित करने योग्य हैं या नहीं।

viii. पूँजी (Capital)— यद्यपि बैंकिंग सेवाओं के माध्यम से देश के भीतर अब पूँजी अधिक गतिशील हो गई, फिर भी अशांत और खतरनाक क्षेत्र में उत्पादन अनिश्चित होता है और ये पूँजी के लिए कम आकर्षक होते हैं।

ix. सरकारी नीति (Government Policy)—संतुलित आर्थिक विकास हेतु सरकार कुछ निश्चित क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करती है।

देश के संसाधनों के प्रयोग से सर्वोत्तम लाभ के लिए भी विशिष्ट क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जाती है।

x. पर्यावरण (Environment)– उद्योगों की स्थापना, उद्योगकर्मी के रहन-सहन इत्यादि की सुविधा के लिए उपयुक्त भूमि, जलवायु और पर्यावरण के अन्य तत्त्व आवश्यक हैं।

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