इस विषय में कोई मतभेद नहीं है कि भारत आज विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में अपनी उत्कृष्ट पहचान बना चुका है तथा उसके पास एक विस्तृत आधार है, चाहे वह मानव संसाधन, सूचना प्रौद्योगिकी, रॉकेट प्रौद्योगिकी, आयुर्विज्ञान, न्यूक्लीय विज्ञान, रक्षा यंत्र, बायोटेक्नोलॉजी तथा इंजीनियरिंग आदि कोई भी क्षेत्र हो । तथापि कुछ कारकों के कारण वह आज भी विश्व में एक मान्य वैज्ञानिक शक्ति नहीं है।
ऐसा होने के संभवतः निम्नलिखित कारण हैं
(i) शिक्षा में कमी,
(ii) स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर विज्ञान की शिक्षा का सही रूप में न होना,
(iii) भारत में कुछ मूलभूत सुविधाओं की कमी,
(iv) प्रारंभिक अनुसंधान के लिये आवश्यक धन की अनुपलब्धि,
(v) विज्ञान प्रबंधन पर अवैज्ञानिक तथा संकुचित विचारधारा वाले नौकरशाहों का नियंत्रण,
(vi) वैज्ञानिकों के लिये रोजगार के सीमित अवसरों की उपलब्धि,
(vii) अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी में सामंजस्य का अभाव,
(viii) उभरते वैज्ञानिकों को धन तथा संसाधन की कमी के साथ-साथ उन्हें उचित अवसर, सम्मान तथा प्रोत्साहन न मिलना एवं उनकी उन्नति के मार्ग में बाधाएँ खड़ी करना,
(ix) प्रशिक्षित वैज्ञानिकों का देश से पलायन,
(x) अनुसंधान पत्रों के शीघ्र तथा उचित प्रकाशन की समुचित व्यवस्था का अभाव,
(xi) हमारी अधिकतर तकनीक उधार की है जो समय से पीछे है।