प्रस्तुत वाक्य फणीश्वरनाथ रेणु(Phanishwarnath Renu) द्वारा लिखित "लाल पान की बेगम" शीर्षक कहानी से उद्धत है। मखनी फुआ की यह उक्ति बिरजू की माँ के प्रति है। बिरजू की माँ ने मखनी फुआ को आगे नाथ न पीछे पगहिया कह दिया था। इसी बात से चिढ़कर मखनी फुआ ने ईर्ष्या द्वेष के भाव से यह उक्ति कही । यहाँ कहानीकार ने ग्रामीण परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है।
मखनी फुआ गाँव की औरतों से कहती हैं कि आजकल बिरजू की माँ को पैसे का घमंड हो गया है । वह समझती है कि चार मन जूट बेचने से उसके पास काफी पैसे हो गए हैं, जिससे वह इतरा गई है और मुझ जैसे गरीब, बेसहारा से सीधे मुँह बात करना नहीं चाहती। कहानीकार की दृष्टि में यदि किसी गरीब को कुछ धन की प्राप्ति हो जाती है, तो उसकी प्रसन्नता स्वाभाविक है। किन्तु कुछ ईर्ष्यालु लोग उसकी थोड़ी-सी खुशी को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते।