प्रस्तुत पंक्ति शिवपूजन सहाय(Shivpoojan Sahay) की कहानी "कहानी का प्लॉट" से अवतरित है। यहाँ कहानीकार ने स्पष्ट किया हैं कि अमीरी का सुख भोगे व्यक्ति पर जब गरीबी की मार पड़ती है, तब उसे सहना उस व्यक्ति के लिए अत्यन्त भयावह हो जाता है। अपने बड़े भाई दारोगाजी के जमाने में मुंशीजी ने खूब मौज किया। उन्होंने भविष्य के लिए कुछ नहीं सोचा।
मुंशीजी ने सोचा होगा कि सब दिन ऐसा ही मौज रहेगा। किन्तु दारोगाजी के मरते। ही उनकी सारी अमीरी घुस गई। जो कभी बटेर का शोरबा सुड़कते थे, चुपड़ी। चपातियाँ चबाते थे, उन्हें अब मटर का सत्तू सरपेटने और चने के कुछ दाने चबाने पड़ते हैं। जो कभी गाँजे में इत्र मलकर पीते थे और अपनी पोशाक में भी चुल्लू-के-चुल्लू इत्र मलते थे, उन्हें अब अपनी रूखी-सूखी देह में लगाने के लिए चुल्लू-भर कड़वा तेल मिलना भी कठिन हो गया। निश्चय ही मुंशीजी के लिए यह बड़ी ही दारुण स्थिति थी। इस संदर्भ में लेखक का कथन है कि सचमुच अमीरी की कब्र पर पनपी गरीबी बड़ी ही जहरीली होती है।