सार्क
दक्षिण एशिया के सात देशों के क्षेत्रीय सहयोग संगठन, सार्क, की स्थापना 1985 में ढ़ाका में इन देशों के शिखर सम्मेलन में की गई थी। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, सार्क, की स्थापना की पहल बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति शेखमुज्जी-उर-रहमान ने की थी। बांग्लाराष्ट्रपति ने 1977-80 की अवधि में दक्षिण एशिया के देशों और लोगों में आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग के लिए सार्क का प्रस्ताव किया था। नवंबर 1980 में बांग्लादेश ने एक लेख तैयार किया। इस लेख, “दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग " को संबद्ध देशों के पास उनके विचारार्थ गया। इसमें क्षेत्रीय सहयोग के विशाल संसाधनों तथा संभावनाओं की ओर संकेत किया गया और इस सहयोग से होनेवाले लाभ पर बल दिया गया। उसके पश्चात् दक्षिण एशिया के संबद्ध देशों की सरकारों में जो विचार-विमर्श हुआ, उसके आधार पर यह निश्चय किया गया कि सार्क सक्रिय रूप से इस बात का प्रयास करेगा कि सभी राज्यों की संप्रभु समानता, प्रादेशिक अखंडता के आधार पर सुरक्षा तथा आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति के आधार पर क्षेत्रीय सहयोग का प्रोत्साहन दिया जाए। यह अपेक्षा की गई थी कि क्षेत्रीय सहयोग का विकास आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में होगा। आरंभ में क्षेत्रीय सहयोग के ग्यारह मुद्दों की पहचान की गई थी। वे थे दूरसंचार, मौसम विज्ञान, परिवहन, जहाजरानी, पर्यटन, कृषि अनुसंधान, साझी परियोजनाएँ, बाजार प्रोत्साहन, वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग, शैक्षणिक सहयोग तथा सांस्कृतिक सहयोग। ये विषय सहयोग और क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त थे।दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान श्रीलंका तथा मालदीव ने मिलकर स्थापित किया। इसके प्रथम शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता बांग्ला राष्ट्रपति एच.एम. इरशाद ने की थी। भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने किया। अन्य शिखर नेता थे पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक, श्रीलंका के राष्ट्रपति जयबर्द्धने, मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल क्यूम तथा नेपाल एवं भूटान के नरेश। सार्क के चार्टर में संगठन के निम्नलिखित उद्देश्यों की व्याख्या की गई है- (क) दक्षिण एशियाई देशों के लोगों के कल्याण को प्रोत्साहन देना था उनके जीवनस्तर में सुधार करना; (ख) आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति तथा सांस्कृतिक सहयोग की गति को तेज करना; (ग) सामूहिक आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन देना और उसे मजबूत करना; (घ) पारस्परिक विश्वास, समझदारी तथा एक-दूसरे की समस्याओं को समझने की प्रक्रिया में योगदान देना; (ङ) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में पारस्परिक सहायता को प्रोत्साहित करना; (च) अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग पर बल देना; (छ) अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने पारस्परिक सहयोग को मजबूत बनाना, तथा (ज) अन्य क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।