'ग्राम-गीत का ही विकास कला-गीत में हुआ है।' पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास प्रक्रिया पर प्रकाश डालें। 'Gram-Geet Ka Hi Vikas Kala-Geet Mein Hua Hai' Pthit Nibandh Ko Dhyan Mein Rakhte Hue Uski Vikas-Prakriya Per Prakash Dalen.
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'ग्राम-गीत का ही विकास कला-गीत में हुआ है।' पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास प्रक्रिया पर प्रकाश डालें। 'Gram-Geet Ka Hi Vikas Kala-Geet Mein Hua Hai' Pthit Nibandh Ko Dhyan Mein Rakhte Hue Uski Vikas-Prakriya Per Prakash Dalen.

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ग्राम-गीत क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया है, जिसका संस्कार अब तक वर्तमान है। ग्राम-गीत भी सर्वप्रथम व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना को लेकर उच्च स्वर में गाया गया; किन्तु इन भावनाओं ने समूह का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी व्यक्तिगत सत्ता समूह में ही लुप्त हो गई और इस प्रकार उसे लोक-गीत की संज्ञा प्राप्त हुई।

ग्राम-गीत को कला-गीत के रूप में आते-आते कुछ समय तो लगा ही, पर उसमें सबसे मुख्य बात यह रही कि कला-गीत अपनी रूढ़ियाँ बनाकर चले, कला-गीत का क्षेत्र भी जितना व्यापक तथा विस्तृत हुआ और उसके अनुसार यदि उसमें कुछ सीमा तक शास्त्रीय रूढिप्रियता न रहती, तो उसके समरूपत्व का निर्वाह भी संभव न होता।

ग्राम-गीत की रचना में जिस प्रकृति और संकल्प का विधान था, कला-गीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया। ग्राम-गीत से कला-गीत के परिवर्तन में एक बात उल्लेखनीय रही कि ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी, वह कला-गीत में आकर कुछ पौरुषपूर्ण हो गई। ग्राम-गीत अत्यधिक संस्कृत और परिष्कृत होकर कला - गीत बन गया।

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