भारत बहुभाषी है क्योंकि उसके संविधान की आठवीं सूची में 18 भाषाएँ अनुसूचित हैं। हमारा देश केवल अपने संविधान की ही दृष्टि से बहुभाषी नहीं, यह अलग बात है कि उसका संविधान कई भाषाई आयामों की दृष्टि से अनूठा है। भारतीय गणतंत्र में इतनी जगह है कि जब भी कोई से समुदाय चाहे तो उपयुक्त राजनीतिक एवं प्रशासनिक तरीकों से आठवीं सूची में अपनी भाषा का नाम जुड़वा सकता है।राष्ट्र, राष्ट्रीयता व राष्ट्रभाषा में कोई अनिवार्य समीकरण है।
भारत में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया । हिन्दी के प्रचार, विस्तार व मानकीकरण के लिए प्रावधान रखे व अंग्रेजी को सह-राजभाषा का दर्जा दिया और अहिंदीभाषी भारतीयों को यह आश्वासन कि जब तक वे नहीं चाहेंगे, अंग्रेजी को इस देश से हटाया नहीं जाएगा। इन सब बातों के बावजूद, सवैधानिक बहुभाषिता भारत के बहुभाषी होने का केवल एक आयाम है। कुछ लोग भारत को बहुभाषी इसीलिए मानते हैं क्योंकि हमारे यहाँ अखबार, फिल्में, किताबें, टी. वी., रेडियो, शिक्षा, दफ्तर आदि का कामकाज कई भाषाओं में एक साथ होता है। कोठारी कमीशन से लेकर आज तक त्रिभाषा सूत्र भारतीय शिक्षा का आधार-सा बना हुआ है।
भारतीय बहुभाषिता के कई आयाम हैं और यह कोई हैरानी की बात नहीं कि पश्चिमी एकभाषी देशों को यह सब एक सिरदर्दी-सा लगता है अधिकतर पिछड़ेपन से जुड़ा हुआ। अभी तक जितने पहलुओं की चर्चा की भारतीय बहुभाषिता का कोई न कोई अंश अवश्य निहित है, लेकिन बहुभाषी होना व्यक्तिगत या सामाजिक स्तर पर भारत के लिए कोई विषय नहीं। भाषाओं को अपने में समेट लेना व अन्य देश-विदेश की भाषाओं से स्वतंत्रतापूर्वक आदान-प्रदान करना, भारतीय व्यक्ति व समाज के लिए एक आम बात है। यहाँ यह कोई अचरज की बात नहीं कि बेटी माँ - बाप से तो भोजपुरी में बात करती है, पुराने दोस्तों से भोजपुरी व हिन्दी में कॉलेज के दोस्तों से अंग्रेजी बहुभाषा का परिचायक है।