भाषाओं के सर्वमान्य स्वरूप का विश्लेषण कर उसमें कुछ नियम निकाले गये । ये नियम ही भिन्न-भिनन भाषाओं के व्याकरण के अंग हैं। इस प्रकार पहले भाषाएँ विकसित हुई और फिर उन भाषाओं के व्याकरण तैयार किए गये ।
भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है नियमों द्वारा नहीं । भाषा को अनुकरण द्वारा सीखा व सुरक्षित रखा जा सकता है, इसके लिए व्याकरण के नियम रटने की आवश्यकता नहीं । बच्चे शिक्षकों को आदर्श समझते हैं और उनके बोलने तथा लिखने के ढंग का अनुकरण करते हैं।
कक्षा 3 तक बच्चों का मानसिक तथा सामाजिक स्तर विवेचना करने योग्य नहीं हो पाता । अतः उन्हें व्याकरण के नियमों की शिक्षा देना उपयुक्त नहीं है।
फिर व्याकरण का निर्माण होने से पहले भाषा का विकास हुआ है अतः व्याकरणों के नियमों का ज्ञान कराने से पहले बच्चों को भाषा का पर्याप्त ज्ञान करा देना चाहिए। भाषा का ज्ञान बच्चों को अपने पाठ-शिक्षण के दौरान होता जाता है।
इसलिए व्याकरण - शिक्षण के लिए पृथक् से कालखण्ड की जरूरत नहीं है ।