हमारे स्कूलों में बात करना प्रायः गलत समझा जाता हूँ। यह माना जाता है कि यदि कोई बात कर रहा है तो ठीक से पढ़ाई नहीं कर रहा होगा। इसलिए जैसे ही अध्यापक बच्चों को बात करता हुआ देखता है, वह तुरन्त उन्हें रोकता है। बात करने की छूट बच्चों को सिर्फ आधी छुट्टी में रहती है जब अध्यापक कोई खास काम नहीं कर रहा होता है।
नर्सरी व प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए बातचीत करना सीखने और सीखी हुई चीज को सुदृढ़ बनाने का एक बुनियादी माध्यम है। सच तो यह है कि ऐसे अध्यापक, जो बच्चों को बात नहीं करने देते वे पहले ही एक ऐसा बेश कीमती साधन बेकार जाने दे रहे हैं जिसके लिए कोई पैसा नहीं खर्च करना पड़ता।
यह सही है कि बच्चे तरह-तरह के उद्देश्य लेकर बातचीत करते हैं और य सभी उद्देश्य अध्यापक के लिए उपयोगी नहीं कहे जा सकते। उदाहरण के लिए बोरियत के मारे बात करने और दूसरे की निगाह से चुकी हुई चीज उसे दिखाने के लिए बात करने में फर्क है।