ब्रह्मांड के बारे हमारा बदलता दृष्टिकोण। Brahmand Ke Bare Mein Hamara Badalta Drishtikon.
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ब्रह्मांड के बारे हमारा बदलता दृष्टिकोण। Brahmand Ke Bare Mein Hamara Badalta Drishtikon.

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प्रारंभ में पृथ्वी को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का केन्द्र माना जाता था जिसकी परिक्रमा सभी आकाशीय पिंड (Celestical bodies) विभिन्न कक्षाओं (Orbit) में करते थे। इसे भू-केन्द्रीय सिद्धान्त (Geocentric Theory) कहा गया। इसका प्रतिपादन मिस्र-यूनानी खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलमी ने 140 ई. में किया था। इसके बाद पोलैंड के खगोलशास्त्री निकोलस कॉपरनिकस (1473-1543 ई.) ने यह दर्शाया कि सूर्य ब्रह्मांड के केन्द्र पर है तथा ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। अतः सूर्य विश्व या ब्रह्मांड का केन्द्र बन गया। इसे सूर्यकेन्द्रीय सिद्धान्त (Heliocentric Theory ) कहा गया। 16वीं शताब्दी में टायकोब्रेह के सहायक जोहानेस कैप्लर (1571-1630 ) ने ग्रहीय कक्षाओं के नियमों की खोज की परन्तु इसमें भी सूर्य को ब्रह्मांड का केन्द्र माना गया। 20वीं शताब्दी के आरंभ में जाकर हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला की तस्वीर स्पष्ट हुई। सूर्य को इस मंदाकिनी के एक सिरे पर अवस्थित पाया गया। इस प्रकार सूर्य को ब्रह्मांड के केन्द्र पर होने का गौरव समाप्त हो गया। 

नोट: केप्लर ने सिद्ध किया कि सूर्य के चारों ओर प्रत्येक नक्षत्र का मार्ग दीर्घ-वृत्ताकार है।

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