पढ़ना सिर्फ वर्णमाला की पहचान, शब्द तथा वाक्य के बोल भर पाना नहीं है, बल्कि इसके आगे बहुत कुछ और भी है अर्थात् कि लिखे हुए के अर्थ को समझ कर अपना नजरिया बनाना या फिर अपनी निजी समझ विकसित करना है। हम सब जानते हैं पढ़ना आने का महत्व क्या होता है। स्कूल की गतिविधि में पढ़ना सीखना और सिखाना बहुत महत्वपूर्ण है। पढ़ना सीखने की शुरुआत स्कूल आने के पहले ही कर लेते हैं।
अध्यापक इस बात की अहमियत समझे कि पढ़ने का अर्थ मात्र शब्दों तथा अक्षरों की पहचान से नहीं है बल्कि उसमें से अर्थ ढूँढने से है अर्थ और शब्द, हिज्जे करके पढ़ने से नहीं आते बल्कि लिखे हुए में अपने अनुभव और अनुमान जोड़ने से आते हैं। पढ़ने का मतलब सिर्फ पाठ्य-पुस्तकों के पाठों को पढ़ पाना नहीं बल्कि अपने चारों ओर बिखरी अथाह लिखित और मुद्रित सामग्री को पढ़ पाना और उसमें से अपने लिए कुछ निकाल पाना असल मायने में पढ़ना है।
भाषा के उच्चस्तरीय कौशल तो पढ़ने की परिभाषा को कहीं और दूर ले जाते हैं। उनके अनुसार पढ़ने के प्रति सदैव एक ललक लिए ले रहना, साहित्य का रसास्वादन करना अपने सामाजिक परिवेश को समझाकर उसके प्रतिआलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करना ही पढ़ना है।