छोटे बच्चों के अध्यापक को जो तमाम चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं, पढ़ना सिखाना शायद उनमें सबसे बड़ी और कठिन चुनौती है। वह सबसे कठिन इसलिए है क्योंकि पढ़ना एक सादा कौशल नहीं है। हर विधि की अपनी सीमाएँ हैं और अध्यापक को यह कोई नहीं सुझा सकता कि उसकी परिस्थिति में सही उपाय क्या है। फिर भी पढ़ने का शिक्षण एक स्फूर्तिवान काम है क्योंकि बच्चे का जीवन का बहुत कुछ उस पर निर्भर है।
यदि एक बार आप बच्चे को पढ़ने और पुस्तकों से सफलतापूर्वक जोड़ सकें तो फिर उसके लिए सम्भावित उपलब्धियों का कोई अंत नहीं है। तो असली बात यह है कि पढ़ने का शिक्षण सफलतापूर्वक कैसे किया जाए ? यहाँ हमें दो क्षण रुककर अपने इर्द-गिर्द फैली भाषण विफलता पर विचार करना चाहिए।
लाखों बच्चे हर साल पढ़ना सीखते हैं, लेकिन इनमें से बहुतेरे पढ़ने का टिकाऊ कौशल प्राप्त नहीं कर पाते। बहुत से स्कूल की परीक्षा पास नहीं कर पाते। बहुत से स्कूल की परीक्षा पास कर लेते हैं, लेकिन पढ़ने में रुचि का विकास नहीं कर पाते।
काफी हद तक विफलताओं का दोष हम पढ़ने के कमजोर शिक्षण को दे सकते हैं। पढ़ने का स्वस्थ कौशल बच्चे के समग्र विकास में क्या भूमिका निभाता है, यह किसी अध्यापक को याद दिलाने की जरूरत नहीं, लेकिन लगता है कि बहुत कम अध्यापक यह जानते हैं कि 'पढ़ने का स्वस्थ कौशल किसे कहेंगे और उसका विकास कैसे किया जा सकता है ?
इस अध्याय में पढ़ने का स्वस्थ कौशल हम उन कौशलों के समूह को मानेंगे जो लिखी या छपी भाषा को अर्थ से जोड़ने में बच्चे की मदद करते हैं। जब एक बच्चा पढ़ी हुई सामग्री को समझने या पहले से ज्ञात किसी चीज से जोड़ने में असमर्थ रहता है तब तक हम उसकी पढ़ने की क्षमता को स्वस्थ नहीं कह सकते l