पहले दिन से ही पढ़ने की सामग्री सार्थक होना जरूरी है और यह सार्थकता उस विद्यार्थी के संदर्भ में ऑकी जानी चाहिए जो उक्त सामग्री का पाठक है। इस संदर्भ में यह तथ्य महत्वपूर्ण हो जाता है कि जो सामग्री पढ़ने के लिए दी जा रही है वह किस भाषा में है, क्या बच्चे उस भाषा से परिचित हैं ? या कहीं यह भाषा एकदम अपरिचित तो नहीं ? तीसरी बात यह है कि भाषा को एक समग्र रूप में देखने पर ही वह सार्थकता पाती है।
उसे अक्षर, उच्चारण, व्याकरण आदि में बाँट देने से यह सार्थकता नष्ट होती है। वास्तव में इन अलग-अलग चीजों का कोई क्रम भी नहीं है, जिसके अनुसार इनका अध्ययन किया जाए। दरअसल भाषा का समग्र रूप तो उसके इस्तेमाल में उभरता है चाहे वह लिखने में हो, बोलने में हो या पढ़ने में, भाषा के अधिकाधिक उपयोग का अवसर बनाना ही एकमात्र रणनीति होगी।