पढ़ने का सारा दारोमदार पढ़ने वाले पर ही होता है। दूसरी ओर वर्ण पहचानना ही पढ़ने का महत्वपूर्ण कार्य नहीं है और वर्ण की पहचान एक आसान प्रक्रिया भी नहीं है। ध्वनियों और वर्णों में कई बार पूरा तालमेल नहीं होता है। ऐसे में पढ़ने की प्रक्रिया का पहला कदम जटिल माना जाता है।
अंग्रेजी पढ़ने में यह समस्या काफी उभरकर आती है। पढ़ना केवल वर्ण या शब्दों को पढ़ लेना ही नहीं है, पढ़ना है समझकर पढ़ना, शब्दों में एक ऐसा अर्थ ढूँढना जिसका पाठक के साथ एक आत्मीय रिश्ता हो । वास्तव में पढ़ना बेहड़ ही सृजनात्मक और संरचनात्मक काम है।
पढ़ना एक ऐसी क्षमता है जिसमें पाठक के अपने पूर्ण अनुभव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो पाठक, दी गई पढ़ने की सामग्री को समझ नहीं पाता उसके लिए केवल वर्णों और शब्दों की पहचान एक अर्थहीन क्रिया है। कक्षा में पढ़ते समय समझकर पढ़ना हमारे व्यक्तित्व को सुदृढ़ बनाता है और हमें आत्मविश्वास देता है।