ध्वनि - संरचना के संसार की यह एक छोटी-सी झलक है । बच्चा यह सब स्वयं कैसे सीख लेता है। ध्वनि अनुकरण से तो नहीं सीख सकता । अनुकरण उस बात का हो जो कोई दिखा सके या बता सके। ये नियम तो भाषा वैज्ञानिक भी ठीक से नहीं समझते। इस तरह का भाषागत ज्ञान होने के लिए खासकर दो चीजें होनी आवश्यक लगती हैं।
भाषा सीखने की सहजता, क्षमता और ऐसा वातावरण जिसमें भाषा तो खूब हो लेकिन स्पष्ट तौर पर नियम व व्याकरण न हो । वातावरण ऐसा कि बच्चे को कुछ बोझ महसूस न हो, बोरियत न लगे, मजबूरी न हो।बच्चे का ध्यान मौके की बात पर हो, न कि व्याकरण के नियमों व भाषा की शुद्धता पर । बच्चे के लिए हम किसी विशेष भाषागत वातावरण की रचना नहीं करते। स्वाभाविक सहज सन्दर्भों में भाषा का प्रयोग करते हैं उससे बातचीत करते हैं, उसकी बातचीत प्यार से सुनते हैं व उसको अन्य लोगों की बातचीत सुनने की पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं।
सामाजिक बातचीत के अथाह समुद्र से बच्चा स्वयं एक सुव्यस्थित व्याकरण व शब्द ढूँढ लाता है। बच्चा स्वतः भाषा को सीखना शुरू कर देता है।