प्राथमिक शाला में भाषा - शिक्षण शाला कार्यक्रम के अंतर्गत हम विशेष तौर पर लिखित भाषा को भी सीखने की बात कर रहे थे। ऐसे अभ्यास सोच रहे थे जिसमें कि सीखने वाला औपचारिक तर्क समझ सके व अभिव्यक्त कर सके। एक सार्थक कोशिश कर सके अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचा पाने की व दूसरे के विचार समझ पाने की व्यापक सन्दर्भों व अनुभव के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की किताबों से जूझ पाने की । भाषा व गणित सीखने में एक गहरा सम्बन्ध है ।
गणित की अवधारणाओं के विकास का ढाँचा भी तर्कों के ढाँचे पर आधारित है।इस तर्की के ढाँचे के विकास के लिए इसके टुकड़ों को भाषा में व्यक्त कर पाना बहुत आवश्यक है। अलग-अलग विषयों की बिखरी अवधारणाओं में गहरे सम्बन्ध हो सकते हैं और उनमें पारस्परिक समझ को मजबूत बनाने की गुंजाइश है। इन सभी विषयों को एक-दूसरे के सापेक्ष रखकर ही समझना चाहिए। उनकी विभिन्न अवधारणाओं में अमूर्तता का स्तर, अवधारणा समझने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे का विकास, अलग-अलग विषयों में एक-दूसरे के समय या एक-दूसरे से जुड़े विचारों/अवधारणों/क्षमताओं आदि को एक ढाँचे में लेना चाहिए।
प्राथमिक शाला में हमें बच्चों को अटूट अनुभव देने की आवश्यकता महसूस होती है। यह जुड़ाव मात्र स्थूल रूप में नहीं कि, एक ही किताब में भाषा भी व बाधित भी दोनों को सिखाया जाना है, वरन् किताब को और सीखने की प्रक्रिया के साथ-साथ क्या सीखा जाना है उसको परिभाषित करने के ढंग में । यह आवश्यक नहीं कि किताब के हर सबक में भाषा हो, गणित हो, विज्ञान भी हो और सामाजिक अध्ययन भी, किन्तु यह कि इन सब का सिलसिला एक अटूट समझ पर आधारित हो । ऐसी इकाइयों की संरचना का आधार बच्चों के सोच के ढाँचे के अनुसार सामग्री व कार्य विधि बनाने में मदद करेंगे । ।