एक लेख और एक पत्र में सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसक कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं । संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उस न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण । इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रांति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिंतन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।