उत्तर : आमतोर पर कहा जाता ह की द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वर्साय की संधि में ही छिपे थे क्योंकि वर्साय की संधि बदले की भावना पर आधारित थी तथा इस संधि का उद्देश्य हारे हुए राष्ट्रों को अपमानित करना था। वर्साय की संधि के पश्चात् युरोप की राजनीति में अनेक बदलाव आये जिनके कारण यह स्पष्ट हो गया की महायुद्ध को लम्बे समय तक नही टाला जा सकता। जर्मनी, जापान व इटली तानाशाही शासको के आने के बाद विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दिया। ब्रिटेन तथा फ्रांस की तुष्टिकरण की नीति ने इन साम्राज्यवादी शक्तियों के हौंसले बढ़ा दिए फलस्वरूप युरूप में टकराव की स्थिति पैदा होने लगी और आगे चलकर विश्व युद्ध में परिवर्तित हो गई
द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों को निम्नलिखित प्रकार से विस्तार पूर्वक समझ सकते हैं।
i) वर्साय की संधि :- प्रथम विश्व युद्ध में हारने के पश्चात् जर्मनी को मित्र राष्ट्रों द्वारा आयोजित पेरिस शांति सम्मेलन में वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े। मित्र राष्ट्रों का उद्देश्य इस संधि के माध्यम से जर्मनी और उसके सहयोगी देशो को आर्थिक व सैनिक रूप से कमजोर करना था अत: मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को युद्ध का जिम्मेदार ठहराते हुए बड़ी रकम क्षतिपूर्ति के रूप में देने को बाध्य किया इसके अलावा उसकी 15% कृषि योग्य भूमि 12% पशुधन और 10% कारखाने छीन लिए गए, सार घाटी की कोयला खाने फ्रांस को दे दी गई और राईन घाटी का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
जर्मनी की सैनिक संख्या एक लाख निश्चित कर दी गई तथा पनडुब्बी व लड़ाकू विमान रखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया जिससे जर्मनी भविष्य में मित्र राष्ट्रों को चुनौती न दे सके । ii) अधिनायकवाद का उदय :- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् युरोप में अधिनायकवाद का विकास हुआ और सोवियत संघ में लेनिन ने नेतृत्व में साम्यवादियों की तानाशाही स्थापित हो गई , मुसोलिनी इटली का, जरनल फ्रांको स्पेन का तथा हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन गया। इन तानाशाहों के युरोप में साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया इंग्लैण्ड तथा फ्रांस इन साम्राज्यवादी शक्तियों को रोकने में असफल रहे जिससे द्वितीय विश्व युद्ध को बढ़ावा मिला ।
सैनिक गुटबंदियाँ :- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सैनिक गुटबंदियाँ भी द्वितीय विश्व युद्ध का बड़ा कारण बनी एक ओर फ्रांस, पौलेण्ड, रूमानिया , युगोस्लाविया तथा चेकोस्लोवाकिया के गुटबंदी कर ली और बाद में ब्रिटेन भी इस गुट में शामिल हो गया तथा दूसरी ओर रोम - बर्लिन - टोक्यो धुरी का निर्माण हुआ। इस प्रकार युरोप दो गुटों में विभाजित हो गया जिसके कारण द्वितीय विश्व युद्ध को बढ़ावा मिला।
तुष्टिकरण की नीति :- जब जर्मनी ने अपनी विस्तारवादी नीति पर चलते हुए युरोप के देशों पर आक्रमण कार्यवाही करनी शुरू की तथा वर्साय की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया तो आरंभ में फ्रांस ने इसका विरोध किया परंतु इंग्लैण्ड के अपने हितों की पूर्ति के चलते तुष्टिकरण की नीति को अपनाया क्योंकि वह फासीवादी शक्तियों का प्रयोग युरोप में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए करना चाहते थे। जिसके कारण तुष्टिकरण की यह नीति आगे चलकर घातक सिद्ध हुई ।
निशस्त्रीकरण की विफलता :- मित्र राष्ट्रों के वर्साय की संधि द्वारा जर्मनी का निशस्त्रीकरण करके उसकी सैनिक शक्ति को बहुत कम कर दिया परंतु मित्र राष्ट्र अपना निशस्त्रीकरण सदैव टालते रहे। परंतु जब हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया तो उसने वर्साय की संधि का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया 1934 में हिटलर ने जर्मनी का शस्त्रीकरण आरंभ कर दिया देखा - देखी युरोप के अन्य देश भी हथियारों का निर्माण करने लगे जो आगे चलकर विनाश का कारण बना।
राष्ट्र संघ की दुर्बलता :- राष्ट्र संघ की स्थापना विश्व शांति को स्थापित करने के लिए की गई थी पर वह अपने उदेश्य में सफल नही हो सका। विशेषज्ञों का मानना था कि राष्ट्र संघ इसलिए सफल नही हो सका क्योंकि अमरीका इसका सदस्य नही था और न ही इसकी अपनी कोई सैना थी । इसी कारण जब 1931 में जापान ने मंचूरिया पर , 1936 में इटली के अबीसीनिया पर, व 1938 में जर्मनी के आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया परंतु राष्ट्र संघ इन साम्राज्यवादी शाक्तियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही न कर सका फलस्वरूप साम्राज्यवादी शक्तियों के होंसले बढ़ गए और ये कारण विश्व युद्ध का उत्तरदायी बना ।
सामाज्य विस्तार की होड़ :- प्रथम विश्व में भारी विनाश को देखने के बाद भी साम्राज्यवादी देशों के अपनी साम्राज्यवाद विस्तार की नीति में कोई परिवर्तन नही किया इंग्लैण्ड व फ्रांस लगातार अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करते रहे सुदूर पूर्व में जापान ने चीन में हस्तक्षेप किया तथा मंचूरिया पर भी कब्जा कर लिया इसी प्रकार जर्मनी के आस्ट्रिया व इटली के अबीसीनिया को हड़प लिया इस प्रकार साम्राज्यवाद का विस्तार भी द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।
महान आर्थिक मंदी :- सन् 1930 में विश्व में एक महान् आर्थिक संकट आया, जिसका प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस आर्थिक संकट के कारण विभिन्न देशो मे कई करोड़ लोग बेरोजगार हो गए इसी आर्थिक मंदी का लाभ उठाकर जर्मनी में हिटलर ने नाजीवाद को बढ़ावा दिया और जापान के भी मंचूरिया पर नियंत्रण कर लिया।
पोलैण्ड पर जर्मनी का आक्रमण:- उपरोक्त कारणों से युद्ध की पृष्टभूमि तैयार हो चुकी थी तथा जैसे ही जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण किया द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया |हिटलर ने पोलैण्ड से माँग की कि वह डेंजिग बंदरगाह तक सड़क व रेल लाइन बिछाने के लिए पोलिश गलिचारे की माँग की। फ्रांस के इस समस्या को सुलझाने के लिए शांति और बातचीत का सुझाब दिया परंतु हिटलर 1 सितम्बर 1939 को पौलेण्ड के नगरों पर बमबारी कर दी। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने हिटलर को चेतावनी दी और जर्मनी से कोई उत्तर न मिलने पर दो दिन बाद दोनों देशों के जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी इस घोषणा के साथ हि द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया।
निष्कर्ष :- उपरोक्त शीर्षकों से हमे पता चलता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के लिए कोई एक देश जिम्मेदार नही है । विश्व युद्ध की नीव वर्साय की संधि में ही रख दी गई थी जिसमे मित्र राष्ट्रों के जर्मनी को सैनिक, आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया था परंतु जब हिटलर सत्ता में आया तो उसने जर्मनी के विस्तार की नीति को अपनाया। इटली भी मित्र राष्ट्रों के रवैये से संतुष्ट नही था अत: जर्मनी और इटली में मित्रता हो गई।
आरंभ में जब फासीवादी शक्तियों ने छोटे देशो के विरुद्ध आक्रमण की नीति अपनाई तो मित्र राष्ट्रों के उन्हे रोकने की बजाय तुष्टिकरण की नीति अपनाई इससे सम्राज्यवादी शक्तियों को हौंसले बढ़ गए। इसके अलावा राष्ट्र संघ भी युद्ध रोकने में नाकाम रहा और अमरीका भी आरंभ मे तटस्थ ही रहा इन्ही सभी कारणों से द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ।