Ans. जब किसी देश की जनसंख्या में वार्षिक 2 प्रतिशत से भी अधिक दर से वृद्धि होती है तो इसे जनसंख्या विस्फोट की स्थिति कहते हैं। भारत की जनसंख्या में भी वृद्धि की यही स्थिति है। । 1921 के पूर्व देश की जनसंख्या प्रायः स्थायी थी। किसी दशाब्दी में इससे कुछ वृद्धि तो किसी में कुछ कमी भी होती थी । किन्तु 1921 के पश्चात् इसमें हम नियमित रूप से वृद्धि पाते हैं। पर 1951 तक जनसंख्या वृद्धि की दर 1.5 प्रतिशत वार्षिक के आस-पास रहती थी। 1951 के बाद देश की जनसंख्या में वार्षिक वृद्धि 2 प्रतिशत से भी अधिक की दर से हो रही है। जहाँ तक वार्षिक वृद्धि की मात्रा का प्रश्न है भारत की जनसंख्या वर्त्तमान समय में लगभग 1 करोड़ 80 लाख प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है जो आस्ट्रेलिया की जनसंख्या से भी अधिक है। यह निश्चित रूप से जनसंख्या विस्फोट की स्थिति का सूचक है। यदि इसी गति से देश की जनसंख्या बढ़ती रही तो 2011 में यह 121 करोड़ के अंक को पार कर गयी ही है तथा 2025 तक तो यह 150 करोड़ तक पहुँच जायगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत निसंदेह जनसंख्या विस्फोट की स्थिति से गुजर रहा है।
भारत में जनसंख्या विस्फोट के पक्ष में साधारणतया निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं
1. कृषि पर जनसंख्या की भारी भीड़: सर्वप्रथम तो भारतवर्ष के प्रायः 70 प्रतिशत व्यक्ति कृषि पर ही आश्रित है । अतः देश की कृषि पर जनसंख्या की अत्यधिक भीड़ है जिसमें औसत जोत का आकार निरंतर घटते जा रहा है। हमारे देश में एक औसत परिवार के लिए 5 से 6 हेक्टर भूमि आर्थिक जोत मानी जाती है। किन्तु यदि प्रत्येक कृषक परिवार को इतनी भूमि दी जाय तो तीन-चौथाई भूमिहीन ही रह जायेंगे।
2. खाद्यान्न की आपूर्ति एवं जनसंख्या की वृद्धि में असंतुलन : भारतीय कृषि से यहाँ के निवासियों के लिए पर्याप्त मात्रा में अन्न भी प्राप्त नहीं हो पाता । वास्तव में, जिससे गति से देश की जनसंख्या बढ़ती है उस गति से खाद्यान्न की आपूर्ति में वृद्धि नहीं होती जिसकेपरिणामस्वरूप देश में खाद्यान्न के अभाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिसके फलस्वरूप प्रतिवर्ष प्राय: अरबों रुपये का अन्न विदेशों से आयात करना पड़ता है। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही देश की जनसंख्या में खाद्यान्न की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से होने लगी है। .
3. उद्योग-धंधों का अविकसित होना : भारत औद्योगिक दृष्टि से भी एक पिछड़ा राष्ट्र है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उद्योग-धंधों के विकास पर अधिक जोर अवश्य दिया जा रहा है, किन्तु उद्योग-धंधों के विकास की गति इतनी तीव्र नहीं है जिससे कि बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। उद्योग-धंधों में देश के बहुत ही कम व्यक्तियों को रोजगार मिलता है। इससे भी हमारे यहाँ जनाधिक्य की स्थिति वर्त्तमान है। -
4. प्रतिबन्धक निरोधों का अभाव तथा नैसर्गिक निरोधों की प्रधानता : भारत में जनाधिक्य की स्थिति वर्तमान है, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि यहाँ पर जनसंख्या के नियंत्रण में प्रतिबन्धक निरोध काम में नहीं लाये जाते। प्रतिबन्धक निरोध के अन्तर्गत देर से ब्याह, अविवाहित जीवन व्यतीत करना, ब्रह्मचर्य पालन, आत्म-संयम तथा संतति-निरोध के कृत्रिम साधनों का प्रयोग इत्यादि आते हैं। भारत में इन सारे उपायों का अभाव है। यहाँ पर शादी करना तथा बच्चा उत्पन्न करना प्रत्येक व्यक्ति अपना परम कर्त्तव्य समझता है। साथ ही, हमारे देश में आज भी बाल विवाह का प्रधानता है । इंगलैंड तथा अमेरिका में 30 वर्ष की अविवाहित औरतें क्रमशः 41 प्रतिशत और 23 प्रतिशत हैं, जबकि भारत में 15 वर्ष की अल्प आयु की प्रायः 75 प्रतिशत लड़कियाँ विवाहित हैं। किन्तु भारत में नैसर्गिक निरोधों की प्रधानता है। माल्थस के अनुसार बाढ़, अकाल महामारी इत्यादि नैसर्गिक निरोध जनाधिक्य की स्थिति के सूचक होते हैं। भारत में आज भी इनकी प्रधानता है। प्रतिवर्ष देश के भिन्न-भिन्न भागों में बाढ़ तथा सूखा से बहुत अधिक क्षति होती है तथा देश में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार नैसर्गिक निरोधों की प्रधानता तथा प्रतिबन्धक निरोधों के अभाव के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि भारत के जनाधिक्य की स्थिति वर्त्तमान है।
5. प्रति व्यक्ति आय में निम्न वृद्धि : विश्व के अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति आय में बहुत ही धीमी गति से वृद्धि हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में भयानक 'मुद्रा- स्फीति के कारण प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि तो प्रायः नगण्य ही रही है यह भी जनाधिक्य का एक महत्त्वपूर्ण परिचायक है।
6. निम्न जीवन स्तर : भारतवासियों का निम्न जीवन स्तर भी इस बात का परिचायक है कि देश में जनाधिक्य की स्थिति वर्त्तमान है।
7. बेकारी एवं अर्द्ध- बेरोजगारी की समस्या : भारत में जनाधिक्य की स्थिति का सर्वाधिक प्रमुख सूचक देश में बेकारी की भीषण समस्या है। देश में करोड़ों व्यक्ति काम चाहते हुए भी बेकार हैं। ग्यारह पंचवर्षीय योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के बावजूद देश में बेरोजगारी की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।