उत्तर :- द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में विभाजित हो चुका था एक USA के नेतृत्व वाला पूँजीवादी गुट तथा दूसरा USSR के नेतृत्व वाला साम्यवादी गुट तथा दोनों गुटों में वैचारिक मतभेद थे तथा दोनों ही महाशक्तियों के पास भारी मात्रा में अस्त्र -शस्त्र थे परंतु दोनों के बीच प्रत्यक्ष युद्ध नही हुआ , दोनों महाशक्तियो के सम्बंध अत्याधिक तनावपूर्ण थे इन्ही तनावपूर्ण सम्बंधो को शीत युद्ध कहा जाता
शीत युद्ध से अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जिसमे युद्ध के जैसा वातावरण तो हो परंतु युद्ध न हो। इस घटना ने न केवल अमरीका और सोवियत संघ को प्रभावित किया बल्कि पुरे विश्व में भय, और शंका का वातावरण पैदा कर दिया था।
शीत युद्ध के कारण
i) ऐतिहासिक कारण :- शीत युद्ध का मुख्य कारण 1917 की रूसी क्रांति है इस क्रांति के पश्चात् साम्यवादी व्यवस्था का जन्म हुआ । साम्यवाद का मुख्य उदेश्य पूँजीवाद को समाप्त करना था। जिसके कारण पूँजीवादी और साम्यवादी शक्तियों के बीच तनाव पैदा हो गया और शीत युद्ध आरंभ हुआ
ii) द्वितीय मोर्चे का प्रश्न :- विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर के सोवियत संध पर आक्रमण किया तो सोवियत नेता स्टालिन ने मित्र राष्ट्रों से जर्मनी के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोलने का अनुरोध किया तथा रूस पर दबाव कुछ कम हो जाए परंतु मित्र राष्ट्र इस अनुरोध को महीनो तक टालते रहे वे चाहते थे कि जर्मनी सोवियत संघ को नष्ट कर दे जिससे सोवियत संघ और मित्र राष्ट्रों के बीच तनाव में वृद्धि हुई।
iii) सोवियत संघ द्वारा याल्टा और बाल्कन समझौते का उल्लंघन :- सन् 1944 में चर्चिल के पूर्वी युरोप के विभाजन को स्वीकार किया था और यह तय हुआ था कि बुल्गारिया और रूमानिया पर सोवियत संघ का प्रभाव रहेगा तथा यूनान पर ब्रिटेन का, इसके अलावा हंगरी तथा युगोरलाविया में दोनों का प्रभाव बराबर रहेगा परंतु युद्ध समाप्ति के बाद USSR ने इस समझौते की परवाह न करते हुए पूर्वी युरोप के सभी देशो में साम्यवाद का प्रसार करना आरंभ कर दिया जिससे तनाव में वृद्धि हुई ।
iv) ईरान से सोवियत सेना का न हटना :- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत सेना के ब्रिटेन की सहमति से उत्तरी ईरान पर अधिकार कर लिया था परंतु युद्ध की समाप्ति के बाद आंग्ल - अमरीकी सेना दक्षिणी ईरान से हट गई पर सोवियत संघ के अपनी सेनाएँ हटाने से इंकार कर दिया और बाद मे UNO के दबाव के बाद वहाँ से सेनाएँ हटाई । परंतु इस घटना ने तनाव के वृद्धिकर दी ।
v) यूनान में सोवियत हस्तक्षेप :- 1944 के समझौते के अनुसार ब्रिटेन का प्रभुत्व यूनान पर स्वीकार किया गया था। परंतु युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन कमजोर हो गया इसलिए उसने यूनान से अपने सैनिक अड्डो को समाप्त करने की घोषणा कर दी जिसका लाभ उठाकर सोवियत संध ने इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना आरंभ कर दिया। vi) टर्की पर सोवियत दबाव :- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद टुर्की पर सोवियत संघ दबाव डाल रहा था कि उसे टर्की में अपने सैनिक अड्डे बनाने का अधिकार दिया जाए लेकिन पश्चिमी देशो ने इसका विरोध किया और अमरीका के इस मामले को सुरक्षा परिषद् में उठाने की चेतावनी दी।
vii) अणु बम का अविष्कार :- द्वितीय विश्व का अंत परमाणु हमले के साथ हुआ अमरीका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाको शहरो पर अणु बम गिराये इन घातक बमों के विषय में USA ब्रिटेन को तो बताया था परंतु USSR से इसे गुप्त रखा गया था सोवियत संघ के इसे विश्वासघात माना और सोवियत संघ को भी इस प्रकार के बमों की जरूरत महसूस हुई।
पश्चिम द्वारा साम्यवाद का विरोध :- पश्चिमी देशो ब्रिटेन, USA आदि ने भी सोवियत संघ की आलोचना की तथा उन्होंने साम्यवादी व्यवस्था की तुलना फासीवादीयों से की और सोवियत जनता को गुलाम बताया पश्चिमी देशो के नेताओं ने सोवियत विरोधी बयान दिये जिससे बढ़ता गया।
बर्लिन की नाकेबंदी :- सोवियत द्वारा लंदन प्रोटोकाल ( जून - 1948) का उल्लंघन करते हुए बर्लिन की नाकेबंदी कर दी गई। इससे पश्चिमी देशों के सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की नाकेबंदी के विरुद्ध शिकायत की और इसे शांति के लिए घातक बताया।
सोवियत द्वारा वीटो का दुरूपयोग :- सुरक्षा परिषद् मे सोवियत संघ ने वीटो का अत्याधिक बार प्रयोग किया जैसे अगस्त 1961 तक USA ने 1 बार भी वीटो का प्रयोग नही किया था जबकि USSR 95 बार इसका प्रयोग कर चुका था जिसमे ये माना जाने लगा की सोवियत संघ इस संगठन को समाप्त करना चाहता है ।
लैण्डलीज सहायता पर रोक :- अमरीका द्वारा लैण्डलीज अधिनियम द्वारा जो आर्थिक सहायता USSR को दी जा रही थी USSR पहले ही उससे असंतुष्ट था परंतु युरोप में विजय के पश्चात् राष्ट्रपति ट्रेमेन ने वह भी बंद कर दी जिससे USSR और अधिक नाराज हो गया।
शीत युद्ध के प्रभाव
i) विश्व का दो गुटों मे विभाजन :- शीत युद्ध के कारण विश्व का दो गुटों में विभाजन हो गया एक गुट का नेतृतव USA ने किया जब्कि दूसरे गुट का नेतृत्व USSR ने किया।
ii) तनावपूर्ण वातावरण :- शीत युद्ध के कारण पुरे विश्व में तनाव का वातावरण था और कई बार दोनों महाशक्तियों के बीच भयंकर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई थी। जैसे क्यूबा मिसाइल संकट, बर्लिन की नाकेबंदी आदि ।
iii) सैनिक संधियों का निर्माण :- शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों ने अपनी सुरक्षा और शक्ति में वृद्धि करने के लिए विभिन्न सैनिक गुटो का निर्माण किया जैसे USA ने नाटो, सीटो और सेटो सैनिक गुट बनाए तो बदले मे USSR के वारसा पैक्ट का निर्माण किया ।
iv) हथियारों की होड़ :- शीत युद्ध के कारण सभी देशो की सुरक्षा के लिए एक बार फिर खतरा उत्पन्न हो गया तथा देशो के अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का निर्माण आरंभ कर दिया जिससे हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिला
v) UNO के महत्व मे कमी :- शीत युद्ध के दौर में महाशक्तियों के आपसी टकराव के कारण कई बार तनाव की स्थिति बनी तथा UNO के द्वारा जो शांति प्रयास किये जा रहे थे वे नाकाम रहे और कई बार ऐसा प्रतीक हुआ की UNO एक व्यर्थ संस्था है क्योंकि महाशक्तियाँ इसके उद्देश्यों की पूर्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर रही थी।
vi) गुट निरपेक्षता का उदय :- शीत युद्ध के दौर में महाशक्तियां छोटे और नव स्वतंत्र राष्ट्रो को अपने गुट में शामिल करने का दबाव डाल रही थी फलस्वरूप उनकी स्वतंत्रता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया और इन देशो के अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया ।
शीत युद्ध का अंत :- 1989 में बर्लिन की दीवार को गिरा दिया, जर्मनी का पुन : एकीकरण हो गया , वारसा पैक्ट को भंग कर दिया गया और दोनों महाशक्तियों के सहयोग को बढ़ावा दिया।