जीएसटी के बारे में टिप्पणी लिखें। GST Ke Bare Mein Tippani Likhen.
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जीएसटी के बारे में टिप्पणी लिखें। GST Ke Bare Mein Tippani Likhen.

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GST (जीएसटी)

GST को वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax) कहते हैं। यह व्यवस्था एक देश एक बाजार तथा एक कर की नीति पर आधारित है। इसमें देश में प्रचलित 14 विभिन्न अप्रत्यक्ष करों का समामेलन किया गया है। GST को आजादी के बाद सबसे बड़ा कर एवं आर्थिक सुधार बताया जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप देश की कर प्रणाली का पूरा परिदृश्य बदलने की सम्भावना है। यह व्यवस्था भारत में 1 जुलाई 2017 से लागू कर दी गयी है। इस व्यवस्था के तहत अब किसी भी वस्तु पर येक्साईज डियूटी, सेल्स टैक्स, वैट तथा चूंगी जैसी कर प्रणाली का खात्मा हो गया है। यह कर प्रणाली भारत में पिछले 17 वर्षो से लागू होने को लंबित थी। यह प्रणाली भारत के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना पढ़ाई के लिए पुस्तक। कर-प्रणाली का यह कदम इंडिया से 'न्यू इंडिया' बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रणाली में विभिन्न वस्तुओं पर पाँच स्लैवों में कर लगाया गया है - 5%, 12%, 15%, 18% एवं 28%।

जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स नहीं देने वाले अब नहीं बच सकेंगे। बिना बिल के थोक व्यापारी या खुदरा व्यापारी सामान भी नहीं लेंगे या देंगे। दरअसल, जीएसटी में व्यापारियों और कारोबारियों को हर महीने अपनी खरीद बिक्री के ब्योरे के बिल जीएसटी पोर्टल पर दाखिल करने होंगे। जीएसटी ऑनलाइन है। इसकी दरें देश भर में समान हैं। इसलिए फाइलिंग में आसानी होगी। इसके दूरगामी असर में सरकार की टैक्स वसूली बढ़ना तय है। ऐसे में, सरकार के पास जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च के लिए ज्यादा धन होगा। जिससे आम जनता को ज्यादा बेहतर सार्वजनिक सुविधाएं मिल सकेंगी। लेकिन, पेट्रोल और डीजल इसमें शामिल नहीं हैं। ऐसे में, राज्य सरकारों को फायदा और आम जनता को नुकसान संभव है। यदि इसे भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए, तो आमजन को सुविधा होगी । शिक्षा व्यवस्था को जीएसटी से बाहर रखना बेहतर निर्णय है। दूसरे राज्यों में काम करने वाले मजदूरों के लिए भी बहुत ज्यादा फायदेमंद है। क्योंकि, अब उन्हें मुंबई, कोलकाता, दिल्ली से समान ढोकर घर नहीं लाना पड़ेगा। अब उनको नजदीकी बाजार में भी उसी दाम में सामान मिल जाएगा। सब मिलाकर देखें तो जीएसटी देश के लिए बहुत ही कारगर साबित होगा।चूंकि जीएसटी संपूर्ण टैक्स प्रणाली में परिवर्तन करने वाली व्यवस्था है इसलिए यदि कुछ समस्याएं सामने आ रही हैं तो इस पर हैरत नहीं हैरत इस पर है कि इन समस्याओं के बहाने कुछ लोग जीएसटी को खारिज करने अथवा आम जनता को परेशान करने वाली व्यवस्था करार दे रहे हैं। यह कुल मिलाकर एक कुतर्क और सुविधाजनक बहाना भी है। आज जीएसटी को लेकर उद्योग- व्यापार जगत की ओर से जैसा विरोध देखने को मिल रहा है वैसा ही उस समय भी दिखाई दिया था जब वैट को अमल में लाया गया था। यदि जीएसटी का विरोध करने वाले व्यापारी उस दौर की याद करें तो उन्हें अपनी भूल का भी अहसास होगा और यह भी पता चलेगा कि इस नई व्यवस्था के विरोध का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है। यदि अभी भी जीएसटी के खिलाफ विरोध प्रदर्शित किया जाता है तो आम जनता के बीच वैसा कोई संदेश जा सकता है कि जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे वही हैं जो अपना कारोबार पारदर्शी ढंग से नहीं करना चाह रहे हैं। यह एक सच्चाई है कि अभी तक व्यापारियों का एक वर्ग परंपरागत तौर-तरीके अपनाए हुए था और ये तरीके पारदर्शी नहीं थे, लेकिन जब हर किसी से पारदर्शिता की अपेक्षा की जा रही है तो फिर उद्योग-व्यापार जगत को यह अपेक्षा क्यों नहीं पूरी करनी चाहिए? बेहतर हो कि सभी लोग यह समझें कि देश अब एक ऐसे दौर में प्रवेश कर गया है जिसमें पारदर्शिता से बचे रहनाकिसी के लिए संभव नहीं होगा और न ही किसी को ऐसी कोई अपेक्षा करनी चाहिए। निःसंदेह इसी के साथ यह भी आवश्यक है कि सरकार और उसकी विभिन्न एजेंसियां जीएसटी को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों के प्रति और अधिक सक्रियता का परिचय दें। जी०एस०टी० लागू होने के बाद केन्द्र तथा राज्य पर करों की आय में वृद्धि हुई है।

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