राष्ट्रमंडल
राष्ट्रमंडल 54 प्रभुसत्ता - संपन्न देशों का स्वेच्छिक संगठन है। इसके सदस्य देश विभिन्न महाद्वीपों में स्थित हैं, परंतु उनमें ऐतिहासिक और भाषायी एकता' है । ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि इसके सभी गैर-यूरोपीय देश थोड़े या अधिक समय तक ब्रिटेन के उपनिवेश रहे थे, परंतु स्वतंत्र हो जाने पर भी वे स्वेच्छा से राष्ट्रमंडल के सदस्य हैं। स्वयं ब्रिटेन भी इसका सदस्य है।4 ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रमंडल उस विकास का परिणाम है जिसकी प्रक्रिया बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में शुरू हुई थी, जब ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ 'श्वेत प्रदेशों' कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका को स्वतंत्रता देकर भी उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के साथ संबद्ध रखा गया था। उन्हें डोमीनियन स्तर प्रदान किया गया था। अर्थात् वे आंतरिक रूप से स्वायत्त हो गए, परंतु बाह्य दृष्टि से वे ब्रिटेन के अधीन रहे। उनकी पूर्ण स्वतंत्रता की माँग के उत्तर में ब्रिटिश संसद ने 1931 में एक कानून ( Statute of Westminster) पास करके उन्हें संप्रभुता प्रदान कर दी। फिर भी वे डोमीनियन कहलाए, यद्यपि वे वैधानिक रूप से ब्रिटेन के समान हो गए थे। किंतु ब्रिटेन का राजा (रानी) ही उनका औपचारिक राजा बना रहा। पहले, ब्रिटेन का राजा उन डोमीनियनों पर राज्य करता था, अर्थात ब्रिटिश संसद उनके लिए कानून बना सकती थी औरब्रिटिश मंत्रिमंडल उनके अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का निर्धारण करता था। परंतु 1931 के पश्चात प्रत्येक डोमीनियन का अपना-अपना राजा (रानी) होने लगा, यद्यपि प्रत्येक गद्दी पर वही व्यक्ति आसीन होता है जो कि ब्रिटेन का भी राजा (रानी) होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक डोमीनियन का राजा अपने स्थानीय मंत्रिमंडल के परामर्श पर संबद्ध देश के विषय में निर्णय करता है। यह राजा प्राय: लंदन में निवास करता है। इसलिए संबद्ध डोमीनियन के मंत्रिमंडल की सिफारिश पर वह अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त करता है, जिसे गवर्नर जनरल कहा जाता है। डोमीनियनों को अधिकार दिया गया है कि वे जब चाहें तो राष्ट्रमंडल को छोड़कर अलग हो सकते हैं।राष्ट्रमंडल ऐसा मंच है जिसमें सदस्य देशों के प्रधानमंत्री अथवा राज्याध्यक्ष समय-समय पर अपने सम्मेलनों में समकालीन अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार करके आम सहमति बनाने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए 1986 के सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका की तत्कालीन रंग भेग की नीति का जोरदार विरोध किया गया तथा उसके विरूद्ध व्यापक प्रतिबंध लगाने का भी निर्णय किया गया। केवल ब्रिटिश प्रधानमंत्री श्रीमती थैचर ने प्रतिबंधों का विरोध किया था। राष्ट्रमंडल रंग-भेद के विरूद्ध संघर्ष का महत्वपूर्ण मंच सिद्ध हुआ। अब रंग-भेद के समाप्त हो जाने पर, राष्ट्रमंडल अपना ध्यान सदस्य देशों के सामाजिक और आर्थिक सहयोग पर केंद्रित कर रहा है।
राष्ट्रमंडल के शिखर सम्मेलनों के अतिरिक्त संगठन का लंदन में एक राष्ट्रमंडल संबंध कार्यालय (Commonwealth Relations Office) है। यह कार्यालय विभिन्न सदस्य देशों के साथ संपर्क रखता है तथा उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता है। महासचिव इसका स्थायी रूप से कार्य करने वाला अधिकारी है। विभिन्न राष्ट्रमंडल देशों के एक-दूसरे की राजधानी में स्थित राजनयिक केंद्रों को दूतावास नहीं कहते हैं, न ही उनके प्रधान को राजदूत कहा जाता है। है। यह उच्च आयोग ( High Commissions) कहलाते हैं, तथा इनके प्रधान को उच्च आयुक्त (High Commissioner) कहा जाता है, यद्यपि वे वही कार्य करते हैं जो कि अन्य देशों के राजदूत (Ambassadors) करते हैं। उनके विशेषाधिकार भी राजदूत के समान ही होते हैं। लंबे समय तक राष्ट्रमंडल देशों में पारस्परिक व्यापार वरीयता (preferential) के आधार पर होता था। यह धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। कुछ सीमा तक इसके लिए क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन ( जैसे सार्क, आशियान इत्यादि) भी उत्तरदायी राष्ट्रमंडल राष्ट्रमंडल 54 प्रभुसत्ता - संपन्न देशों का स्वेच्छिक संगठन है। इसके सदस्य देश विभिन्न महाद्वीपों में स्थित हैं, परंतु उनमें ऐतिहासिक और भाषायी एकता' है। ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि इसके सभी गैर-यूरोपीय देश थोड़े या अधिक समय तक ब्रिटेन के उपनिवेश रहे थे, परंतु स्वतंत्र हो जाने पर भी वे स्वेच्छा से राष्ट्रमंडल के सदस्य हैं। स्वयं ब्रिटेन भी इसका सदस्य है।4 ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रमंडल उस विकास का परिणाम है जिसकी प्रक्रिया बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में शुरू हुई थी, जब ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ 'श्वेत प्रदेशों' कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा दक्षिण अफ्रीका को स्वतंत्रता देकर भी उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के साथ संबद्ध रखा गया था। उन्हें डोमीनियन स्तर प्रदान किया गया था। अर्थात् वे आंतरिक रूप से स्वायत्त हो गए, परंतु बाह्य दृष्टि से वे ब्रिटेन के अधीन रहे। उनकी पूर्ण स्वतंत्रता की माँग के उत्तर में ब्रिटिश संसद ने 1931 में एक कानून ( Statute of Westminster)पास करके उन्हें संप्रभुता प्रदान कर दी। फिर भी वे डोमीनियन कहलाए, यद्यपि वे वैधानिक रूप से ब्रिटेन के समान हो गए थे। किंतु ब्रिटेन का राजा(रानी)ही उनका औपचारिक राजा बना रहा।पहले, ब्रिटेन का राजा उन डोमीनियनों पर राज्य करता था, अर्थात ब्रिटिश संसद उनके लिए कानून बना सकती थी औरहैं।