Ans. राजनीतिक साहित्य में कौटिल्य का अर्थशास्त्र का अपना एक विशेष महत्व है। इन्होंने राज्य की उत्पत्ति सामाजिक समझौते (Social Contract) के आधार पर माना। इन्होंने राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था माना क्योंकि कौटिल्य के काल में राजतंत्र ही एकमात्र स्थायी, व्यवस्थित तथा केन्द्रीकृत व्यवस्था थी, यह जनता में एकता और अनुशासन की स्थापना किया करता था। राज्य का आधार भी कौटिल्य ने विकास को माना था। राजनय अथवा राजतंत्र में राजा सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च स्थान रखता था। इन्होंने राजा के उत्तराधिकारी के संदर्भ में रक्त की शुद्धता राजा के उत्तराधिकारी के संदर्भ में रक्त की शुद्धता को सर्वाधिक महत्व दिया है। राजा का प्रमुख कार्य न्याय व्यवस्था को संचालित करना था। स्वधर्म का पालन करना ही न्याय की स्थापना करना है और इस मान्यता को कौटिल्य ने प्रतिपादित किया। साथ ही कौटिल्य ने ग्राम स्तर से लेकर केन्द्र स्तर तक केन्द्रीकृत न्यायपालिका के संगठन का समर्थन किया। तत्कालीन समय में भी निम्न न्यायालय की अपील उच्च न्यायालय सुना करता था। वास्तव में कौटिल्य प्रमाणिक तथ्य, साक्ष्य और स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था और प्रक्रियाओं का समर्थक तथा पक्षधर था। कौटिल्य की मान्यता है कि विभिन्न अपराधों के लिए राज्य के शासक अर्थात् राजा द्वारा अर्थदण्ड, कार्य दंड, बंधानागार दंड देने सम्बन्धी मान्यता को वैध तथा समर्थन प्रदान किया। अतः इनके मतानुसार राजा राज्य की कार्यपालिका का सर्वोच्च अधिकारी होता है -
और साथ ही राजा दंड का प्रतीक है। राजा एक आदर्श पुरुष होता है जो समस्त सद्गुणों का प्रतीक होता है और जिसका एकमात्र लक्ष्य राज्य और प्रजा का कल्याण करना होता है।आचार्य कौटिल्य ने राजा में अनेकानेक गुणों को सन्निहित मानते हुए अनिवार्य राजा को श्रेष्ठ कुल में जन्म होना चाहिए । धार्मिक प्रवृत्ति, सत्यवादी, दृढ़-प्रतिज्ञा, सत्य और गुण सम्पन्न कृतज्ञ और उत्साहित व्यक्तित्व रखनेवाला होना चाहिए। साथ ही एक राजा को उच्च उद्देश्य रखनेवाला, कार्यों को शीघ्र सम्पादित करने की क्षमता रखनेवाला, वृद्ध जनों को सम्मान. देनेवाला, समस्त सामंतों में सर्वाधिक योग्य स्थिर-मति, न्यायप्रिय, अस्त्र-शस्त्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए अभिलाषी व्यक्ति तथा शील- सम्पन्न वाला व्यक्ति होना चाहिए। शूरता, अर्थपूर्ण वचन, एक अच्छा वक्ता, स्मृति - कुशल, प्रतिभा सम्पन्न, शस्त्र चलाने में कुशल, संकटकाल में शत्रु पर आक्रमण करने में निपुण, उपकार में योग्य, दूरदर्शी तथा दुर्भिक्ष के समय प्रजा को समयानुकूल सहायता देने में सक्षम, कार्यकाल परिणाम पहले से ज्ञात करने में कुशल व दक्ष, संधि का ज्ञाता मृदुल स्वभाव, प्रियभाषी, टेढ़ी भृकुटी से प्राय: देखने वाला तथा काम, क्रोध, मोह, मद, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष से मुक्त पुरुष ही राजपद के लिए उपयुक्त माने जाने चाहिए और इस मान्यता को भी आचार्य कौटिल्य ने अपना समर्थन दिया।
एक राजा को योग्य अमात्यों को ही मंत्रिपद पर नियुक्त करना चाहिए और इसमें सावधानी बरतना चाहिए। प्रत्येक राज्य कर्मचारी बुद्धिमान, कठोर, स्वामीभक्त, शुद्ध हृदय, उत्साही, प्रतिभासम्पन्न, श्रेष्ठ वक्ता और कार्यकुशल होने चाहिए और ऐसे गुणों से युक्त अमात्यों को मंत्रिपरिषद में स्थान राजा द्वारा दिया जाना चाहिए। इसका भी समर्थन आचार्य कौटिल्य ने किया है। आचार्य कौटिल्य के ही शब्दों में हम पाते हैं कि क्यों राजतंत्र उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि 'मत्स्य न्याय से पीड़ित प्रजायें मनु के पास गई और बोली कि मैं तुम्हें अपना राजा नियुक्त करती हूँ। तुम्हें हमलोग धान्य का छट्ठा भाग तथा व्यापार पदार्थों का दसवां भाग कर (Tax) के रूप में देंगे, तुम मेरी रक्षा करो। इस प्रकार राजा अथवा राष्ट्र की उत्पत्ति हुई। राजा प्रजा से (टैक्स) कर ग्रहण करके उनकी रक्षा और कल्याण का कार्य सम्पादित करते हैं, वे इन्द्र और यम के समान होते हैं और प्रजा में व्यवस्था स्थापित करते हैं जिनका निग्रह अथवा स्थापना से मत्स्य न्याय का अन्त हो जाता है और राज्य को अनिवार्य संस्था के रूप में आचार्य कौटिल्य ने मान्यता प्रदान किया। एक राजदूत के लिए यह आवश्यक है कि दूसरे देश में प्रवेश करते समय यथासंभव शानोशौकत के साथ चलना चाहिए। राजा की सभा में निःसंकोच और निर्भय होकर अपने राजा का संदेश देना चाहिए। राजा को चाहिए कि अपने गुप्तचर और दुर्गों पर भी विशेष ध्यान रखें। इस प्रकार राजतंत्र हलांकि वर्त्तमान समय में अनुपयुक्त है लेकिन कौटिल्य का राजनय सिद्धांत जनतंत्र को सबल बनाने में नींव का पत्थर जैसा कार्य करके महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसे एक महत्वपूर्ण कारक माना जा सकता है।