राजा राम मोहन राय के बारे में वर्णन करें। Raja Rammohan Rai Ke Bare Mein Varnan Karen.
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राजा राम मोहन राय के बारे में वर्णन करें। Raja Rammohan Rai Ke Bare Mein Varnan Karen.

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राजा राम मोहन राय का जन्म 1772 ई० में बंगाल के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 12 वर्ष की उमर में वे अरबी और फारसी के अध्ययन के लिए पटना गये । पुनः आप तिब्बत गये जहाँ आपने बौद्ध मत का अध्ययन किया। फिर आपको घर बुला लिया गया। फिर आपने काशी में संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। उसके पश्चात ईस्ट इंडिया कम्पनी के नौकर हुए। वहाँ आपने अपने अफसर डिग्गी की कृपा से अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की।

राजा राम मोहन राय के स्वतंत्र विचारों से उनकी माता बहुत रूष्ट रहा करती थी और यहाँ तक कि इनकी पत्नियों ने भी इनके साथ रहने से इन्कार कर दिया। 1814 ई० में आपने नौकरी छेड़कर कलकत्ता में निवास स्थान बना लिया। यहीं वे अपनी धार्मिक विचारों का प्रचार करने लगे। 1815 ई० में राजा साहब ने आत्मीय सभा की स्थापना की, पर वह केवल 4 वर्षों तक ही चल पाई। इसी बीच आपने उपनिषदों का अध्ययन किया। 1819 ई० में आपने वेदान्त सूत्रों का तार बंगला और अंग्रेजी में प्रकाशित किया। उसने 4 उपनिषदों का अनुवाद भी किया। उनका कथन था कि उपनिषद में मूर्ति पूजा का कहीं नाम तक नहीं है।

श्रीरामपुर के मिशनरियों के सम्पर्क में आकर ईसाई मत का अध्ययन किया और उससे बड़े प्रभावित हुए। 1820 ई० में उसने एक पुस्तक "The Principles of esus the Guide to peace Happiness" लिखी जिसमें ईसा की शिक्षायें तो थीं पर आडम्बरपूर्ण बातें न थीं। इस पर पादरियों ने इनकी बड़ी निन्दा की। पर राजा साहब न डरे और उन्होंने "इसाई जनता से अपील' शीर्षक 3 निबंध लिखे और सिद्ध किया कि ईसा ईश्वर के पुत्र नहीं थे।

राजा साहब आवागमन पर विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने ईसाइयों से सामूहिक उपासना पद्धति ली, इन्हीं कुछ बातों से फरबुहर ने लिखा है कि राजा राम मोहन राय हिन्दू नहीं रह गये। पर फरबुहर का वह कथन बिल्कुल असत्य है। राजा साहब को हिन्दुत्व में प्रेम था, पर वे हिन्दुत्व का परिष्कार चाहते थे। उन्होंने मूर्ति पूजा विरोध, एकेश्वरवाद, बुद्धिवादी दृष्टिकोण और मानव धर्म-से चार बातें हिन्दू वेदान्त, सूफीमत तथा ईसाई मत से ली थी। उनके एकेश्वरवाद के सभी धर्म के लोग प्रसन्न थे।

राजा राम मोहन राय ने विलियम बेटिक को प्रेरणा दी कि वे निर्भय होकर सती प्रथा को रोके। उन्होंने बहुविवाह और बालविवाह का विरोध किया। वे स्त्रियों को समानाधिकार के पक्षपाती थे। राजा साहब ने अंग्रेजों के मस्तिष्क से भारतीय के प्रति हीनता की भावना को निकालने का सफल प्रयास किया।

वे अंग्रेजी भाषा के पक्षपाती थे। वे चाहते थे कि अदालत में जूरी प्रथा का प्रयोग हो। कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग किया जाय तथा कानूनों का संग्रह कर लिया जाये। राजा साहब ने प्रेस की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया और स्वयं "संवाद-कौमूदी' नामक बंगाली पत्र का सम्पादन किया। उसके 1823 के प्रेस रेग्यूलेशन ऐक्ट के विरूद्ध आंदोलन किया। 1831 ई० से 1833 ई० तक इंगलैंड में रहते हुए राजा साहब ने ब्रिटिश शासन पद्धति के सुधार के लिए आंदोलन किया। वे प्रथम भारतीय थे जिनसे आंग्ल संसद ने राय ली।

राजा साहब ने कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज खोलने में बड़ी प्रेरणा दी। उन्होंने यह भय निर्मूल कर दिया कि अंग्रेजी पढ़कर लोग नास्तिक हो जाते हैं। राजा साहब पूर्व और पाश्चात्य के समन्वय थे। उन्होंने अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं पर बल दिया। उन्होंने खुद बंगाल में व्याकरण, भूगोल, ज्योतिष ज्यामिति और गद्य पर पुस्तकें लिखी। उन्होंने स्त्री शिक्षा पर बल दिया।

1828 ई० में राजा साहब ने ब्रह्म समाज की स्थापना की। ब्रह्म समाज ने सामाजिक दोषों पर जमकर प्रहार किया। राजा साहब की मृत्यु विलायत में ही हुई। उनकी मृत्यु के पश्चात् ब्रह्म समाज का कार्य देवेन्द्रनाथ और शिवचन्द्र सेन ने किया।

राजा साहब सच्चे अर्थ में सुधारक थे। कविन्द्र, रविन्द्र के शब्दों में राजा राम मोहन राय ने भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया। उन्हें भारतीय पुनर्जागरण का पिता और भारतीय राष्ट्र का पैगम्बर भी कहा जाता है।

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