जल संरक्षण की विवेचना करें। Jal Sanrakshan Ki Vivechana Karen.
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जल संरक्षण की विवेचना करें। Jal Sanrakshan Ki Vivechana Karen.

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Ans:उपलब्ध पेय जल के अतिउपयोग और दुरुपयोग के कारण विश्व भर में पेयजल संकट की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है। जल का उपयोग चाहे घर में हो या कृषि में या फिर उद्योगों में इसका सभी मानवीय क्रियाकलापों में अपव्यय किया जाता है। प्रदूषण एक अन्य प्रमुख कारण है जिसके फलस्वरूप पेय जल की क्षति होती है। एक उत्तम विलायक होने के कारण जल में विभिन्न अशुद्धियाँ आसानी से घुल जाती हैं।

वननाशन के कारण जल के भू-पृष्ठीय अपवाह में वृद्धि हुई है जिससे जल भूमि के भीतर नहीं रिसता और इस कारण भौम जल भंडार का पुनर्भरण नहीं हो पाता है। जनसंख्या और साथ ही प्रति व्यक्ति जल की खपत में वृद्धि के कारण भौम जल के उपयोग में भी वृद्धि हुई है। हम भौम जल का निरंतर दोहन कर रहे हैं जबकि उसका पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है। इसका परिणाम यह है कि हमें जल संकट और सूखे की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त वर्षा के दौरान कुछ क्षेत्रों में प्रायः बाढ़ की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

जल संरक्षण पर्यावरण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विषय है। हम बहुत अधिक मात्रा में जल का अपव्यय कर रहे हैं। नलों और पाइपों से रिसकर पेय जल की बहुत अधिक मात्रा व्यर्थ में ही नष्ट हो जाती है। बाँधों से नहरों और पाइपों के जरिए घरों तक पेय जल पहुँचाने के दौरान ही पेय जल की लगभग 50% मात्रा व्यर्थ बह जाती है। जल की प्रति व्यक्ति खपत में कमी लाना और इसके अपव्यय को रोकने के लिए जल संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए जल प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

जलसंभर प्रबंधन का लक्ष्य मृदा का संरक्षण और जल आपूर्ति का पुनर्भरण करना है। इसमें पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। जलसंभर प्रबंधन में निम्नलिखित चरण अंतर्निहित हैं

1. किसी निम्नीकृत (निम्न कोटि के) भूक्षेत्र की पहचान करना।

2. लोगों को स्वच्छ जल के गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार की आवश्यकता से अवगत कराना ताकि इस कार्य में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

3. क्षेत्र विशेष में वनस्पति आवरण विकसित करना ताकि वनस्पतियाँ मृदा को जकड़े रखें और इस प्रकार मृदा अपरदन को रोका जा सके।

4. वर्षा जल को बह जाने से रोकने के लिए क्षेत्र में लंबी-लंबी खाइयाँ और टीले निर्मितकरना ताकि वर्षा जल भूमि में रिसकर भौम जल का पुनर्भरण करे। 5. नदियों या जलधाराओं में नाला प्लग और अवरोधक बाँध निर्मित करना ताकि जल बहकर निम्नतलीय क्षेत्र में न चला जाए। ऐसा करना अधिक मात्रा में जल को रोके रखने में सहायक सिद्ध होता है।

आज निम्नलिखित कारणों से वर्षा जल संचयन अनिवार्य हो गया है।. बढ़ती हुई माँग के कारण जल की अत्यधिक कमी हुई है।

2. शहरीकरण और उसके परिणामस्वरूप वननाशन के कारण जल मृदा में बहुत कम जल अंतःस्रावित हो पाता है और भौम जल का पुनर्भरण नहीं हो पाता।

शहरी क्षेत्रों में भौम जल का तेजी से दोहन हो रहा है तथा वर्षा जल के निस्पंदन में लगातार कमी आ रही है। अतः भौम जल पुनर्भरण और जल स्तर को ऊँचा करने के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी अभिकरणों तथा आम जनता द्वारा वर्षा जल संचयन की तकनीक को अपनाया जाए।

जल की भावी आवश्यकता और वैकल्पिक प्रौद्योगिकीय विकास : पीने, साफ-सफाई और धुलाई जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के अतिरिक्त वर्तमान में विभिन्न विद्युत उपकरणों जैसे वाशिंग मशीनों, एयरकंडीशनरों तथा परिवहन और मनोरंजन के लिए भी जल की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त मलजल निबटान के लिए भी हम जल का ही प्रयोग करते हैं। उद्योगों द्वारा बहि:स्रावित विषैले कचरों के कारण स्वच्छ जल की भारी कमी उत्पन्न हो गई है।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें स्वच्छ जल के अतिरिक्त वैकल्पिक स्रोतों की खोज करनी चाहिए। जल के कुछ संभावित स्रोतों का उल्लेख नीचे किया गया है

1.दूर-दूर तक होने वाली वर्षा का पूर्वानुमान लगाना। 

2.कृत्रिम तरीकों से वर्षा कराना। 

3.गंधक जल का अंतरण। 

4. समुद्री जल का विलवणीकरण, अर्थात् समुद्र के खारे जल को मीठे जल में बदलना।

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