स्थापित विश्वास और प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में बसे सिद्धान्त के विपरीत किंवदन्तियाँ कुछ भी हो सकती हैं, लेकिन धर्म सिद्धान्त एक स्थापित विचार होता है जिसका विरोध बहुत ही कम व्यक्ति कर पाते हैं।
उदाहरण के लिये - (i) प्राचीन काल में टोलमी ने भूकेन्द्री सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिसके अनुसार पृथ्वी को स्थिर माना गया तथा सभी आकाशीय पिण्ड, जैसे- सूर्य, ग्रह, तारे आदि पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते थे। बाद में इटली के वैज्ञानिक गैलीलियो ने माना कि पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य स्थिर है तथा पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
तत्कालीन शासकों द्वारा गैलीलियों की संकल्पना को गलत कहा गया और इसके लिये उसे दण्डित भी किया गया। लेकिन कालान्तर में केप्लर तथा न्यूटन ने गैलीलियों के सिद्धान्त का समर्थन किया और अब यह धर्म सिद्धान्त के रूप में मान्य है।
(ii) आइन्स्टीन के पूर्व यह माना जाता था कि द्रव्य अविनाशी होता है तथा ऊर्जा भी अविनाशी होती है तथा दोनों में कुछ भी सम्बन्ध नहीं है।
अतः द्रव्यमान संरक्षण का नियम तथा ऊर्जा संरक्षण का नियम, दोनों ही स्वतन्त्र नियम थे । आइन्स्टीन ने इन दोनों स्वतन्त्र नियमों के स्थान पर द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता समीकरण E = mc2 दिया और आज यह भौतिकी में एक धर्म सिद्धान्त है ।