प्रातः सोकर उठा ही था कि मोबाइल फोन की घण्टी बजने लगी । देखा तो दूसरी ओर अमरीका से मेरा वैज्ञानिक मित्र हैरी था। उसने मुझे यह बताने के लिये फोन किया था कि मुझे दोपहर 1.00 बजे तक अमरीका के शिकागो में स्थित उसकी प्रयोगशाला में पहुँच जाना है।
मैं तुरन्त तैयार होकर दिल्ली के हवाई अड्डे पर पहुँचा और वहाँ से हवाई जहाज द्वारा 12:30 बजे शिकागो के हवाई अड्डे पर पहुँच गया। वहाँ से मैं वायु-टैक्सी द्वारा ठीक 1.00 बजे हैरी की प्रयोगशाला पहुँच गया । हवाई जहाज, वायु-टैक्सी तथा यातायात के सभी संसाधन हाइड्रोजन - ईंधन से संचालित होते थे। प्रयोगशाला के मुख्य द्वार पर सुरक्षा रोबोट तैनात थे। द्वार पर लगे संवेदी स्क्रीन पर हाथ रखने पर उससे सम्बद्ध कम्प्यूटर ने मेरी पहचान सुनिश्चित कर दी और द्वार खुल गया। मेरे अन्दर जाते ही द्वार स्वतः ही बन्द हो गया । अन्दर प्रवेश करने पर एक रोबोट ने मेरा स्वागत किया और मुझे हैरी के कमरे तक ले गया। वहाँ हैरी तथा उसकी महिला चिकित्सक मित्र लूसी मंगल ग्रह के निवासी अपने मित्र अल्फा-2 से कम्प्यूटर द्वारा टेली- कान्फ्रेंसिंग कर रहे थे। यह एक विशेष प्रकार का कम्प्यूटर था जिसके संवेदी सेंसर अल्फा-2 की भाषा का अंग्रेजी में और अंग्रेजी का अल्फा-2 की भाषा में अनुवाद. कर देते थे। वास्तव में अगले दिन हमें 2 दिनों के लिये चन्द्रमा पर पिकनिक मनाने जाना था। मंगल ग्रह से अल्फा-2 भी चन्द्रमा पर पहुँचने वाला था। लगभग 3 माह पूर्व लूसी का बाँया हाथ एक दुर्घटना में पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो गया था तथा शल्य चिकित्सा द्वारा क्षतिग्रस्त हाथ को शरीर से अलग करके उसके स्थान पर मानव अंग बैंक से ठीक उसी प्रकार का हाथ लेकर उसका प्रत्यारोपण किया गया था । लूसी अब पूर्णतः स्वस्थ व सामान्य थी। पृथ्वी से चन्द्रमा तक की यात्रा में 18 घण्टे का समय लगना था, तथा चन्द्रयान को अगले दिन प्रात: 8.00 बजे उड़ान भरनी थी । हम इससे 12 घण्टे पूर्व अर्थात् सांय 8 बजे ही विशेष वायु-टैक्सी द्वारा अन्तरिक्ष स्टेशन पर पहुँच गये। वहाँ हमारी सम्पूर्ण चिकित्सकीय जाँच हुई तथा हमें विशेष कक्ष में बाह्य वातावरण से पूर्णत: पृथक् 10 घण्टे तक रखा गया तथा कुछ औषधियाँ भी दी गईं | इस यात्रा के लिये आवश्यक सामग्री, जैसे- यात्रा में पहनने वाले विशेष वस्त्र, ऑक्सीजन मास्क, भोजन की ट्यूब तथा कैप्सूल, पानी की ट्यूब आदि चन्द्रयात्रा का प्रबंध करने वाली एजेन्सी ने ही उपलब्ध कराये। व्यक्तिगत सुरक्षा के लिये लेसरगन तथा न्यूट्रॉन गन भी उपलब्ध करायी गई ।
शत्रुओं के किसी भी संभावित आक्रमण से बचने के लिये चन्द्रयान के चारों ओर विशेष सुरक्षा कवच तथा अति उच्च तीव्रता का चुम्बकीय क्षेत्र था जो अतिचालक तारों की सहायता से उत्पन्न किया गया था। यह चन्द्रयान प्रति सप्ताह चन्द्रमा का एक चक्कर लगाता था। चन्द्रयान को एक विशेष रासायनिक घोल से विलेपित किया गया था। यह घोल सूखने पर चन्द्रयान की बाह्य सतह पर लगभग 10 माइक्रोन मोटी ऊष्मा की कुचालक एक पर्त बना देता था जो पृथ्वी के वायुमण्डल से गुजरते समय घर्षण से उत्पन्न उच्च ताप से यान की रक्षा करती थी।
चन्द्रयान ने लगभग 20,000 किमी / घण्टा की चाल से चलकर ठीक 18 घण्टे में हमें चन्द्रमा पर उस स्थान पर पहुँचा दिया, जहाँ यात्रियों के लिये विशेष कैम्प बना हुआ था। हमारे पहुँचने के कुछ ही देर बाद मंगल ग्रह से अल्फा-2 भी अपने एक साथी के साथ वहाँ पहुँच गया। वे अपने साथ अपनी आवश्यकता के सभी आवश्यक समान लेकर आये थे। उनके वस्त्र इस प्रकार के थे कि कैम्प के अन्दर तथा बाहर की सभी परिस्थितियों में वे सुविधापूर्वक रह सकें। कैम्प की समस्त व्यवस्थाएं रोबोट संभाल रहे थे।