प्रस्तुत पंक्ति 'मलयज की डायरी', 'हँसते हुए मेरा अकेलापन' की है। इसमें लेखक कहता है कि संसार से सम्पृक्ति का अर्थ है संसार के व्यापारों में लिप्त होना, उसके प्रति अनुराग होना। इससे भिन्न अलिप्तता का जो मार्ग होता है उसे सन्यास कहते हैं। संसार में लिप्त होने के कारण ही मनुष्य सुविधा के साधन का निर्माण करता है, शिक्षा प्राप्त करता है, धन कमाता है तथा परिवार जोड़ता है। यह सब काम संन्यासी नहीं करता। उसके पास करने के लिए कुछ होता ही नहीं है। अगर मनुष्य लिप्त होकर किसी चीज की रचना नहीं करता तो आज सभ्यता और संस्कृति का इतना विकास नहीं होता। अतः मनुष्यता के विकास के लिए, उसकी पूर्णता के लिए रचना कर्म जरूरी है और यह राग या लिप्तता से पैदा होता है।