भाषा और समाज एक दूसरे के पूरक है।" इस कथन की संक्षेप में व्याख्या कीजिए । Bhasha Aur Samaj Ek Dusre Ke purak Hai Is Kathan Ki Sankshep Mein Vyakhya Kijiye.
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भाषा और समाज एक दूसरे के पूरक है।" इस कथन की संक्षेप में व्याख्या कीजिए । Bhasha Aur Samaj Ek Dusre Ke purak Hai Is Kathan Ki Sankshep Mein Vyakhya Kijiye.

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भाषा और समाज का संबंध अविच्छिन माना गया है अतः भाषा और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं।

 ये दोनों अपने अस्तित्व को बचाने हेतु एक-दूसरे पर निर्भर है। हर भाषा का एक अलग समाज होता है, जहाँ उसे प्रयोग में लाया जाता है।

 समाज समरूपी या एक स्तरीय न होकर अनेक विभिन्नताओं से युक्त होता है। 

विविध प्रकार के सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश के प्रभाव से भाषा में भी भिन्नता होती है। भाषा की उत्पत्ति समाज द्वारा ही होती है। 

व्यक्ति समाज के बिना न तो भाषा सीख सकता है और न ही उसको शिक्षित कर सकता है। जैसे- समाज अपने अस्तित्व के लिए भाषा पर निर्भर है वैसे ही भाषा की पूर्णता भी समाज के सापेक्ष है और यही भाषा एवं समाज की जीवंतता का आधार है।

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