भारत की अनेक भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं व एक संस्कृत को लिखने के लिए भारत में ही अनेक लिपियों का प्रयोग होता है। ऐसा भी नहीं है कि लिपी होने से ही भाषा में साहित्य की संभावना होती है।
ऋग्वेद जैसे साहित्य के लिए सदियों से किसी लिपि की आवश्यकता नहीं पड़ी। सारे भारत में फिर भी ऋग्वेद का वाचन एक ही तरह से होता है। गाँव-गाँव में रामचरितमानस नित गाया, सुना जाता है - लिपि की कोई आवश्यकता नहीं। भाषा प्राचीन है, लिपी अभी कल का आविष्कार होने न होने से भाषा बोली में अन्तर करना संभव नहीं। उपर्युक्त कारणों से "किसी भी भाषा को किसी भी लिपि में लिखा जा सकता है।”