भोजन एक अनिवार्य आवश्यकता है। मनुष्य को अपने स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखने के लिए इस प्रकार का भोजन करना चाहिए जो कि संतुलित होने के साथ-साथ पूर्ण रूप से कीटाणु रहित हो। प्रायः अधिक गर्मी के मौसम में बैक्टीरिया तथा अन्य छोटे-छोटे जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं तथा भोजन को विषाक्त बना देते हैं परन्तु भोजन संरक्षण की विधियों को उपयोग करके भोजन को कुछ समय तक संग्रहित किया जा सकता है। इसी प्रकार से भोजन संरक्षण की विधियों के द्वारा अतिरिक्त भोजन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है।
यदि भोजन को ठीक तरह संग्रह किया जाये तो भोजन को कई दिनों सप्ताह व महीनों तक के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। सुरक्षित ढंग से संग्रह करने से भोज्य पदार्थों का रंग-रूप, गन्ध आकार तथा पोषक तत्व सामान्य बना रहता है। यदि भोज्य पदार्थों का संग्रह ठीक प्रकार से न किया जाय तो उसमें घुन व फफूंदी लग जाती है, उनके रंग व गन्ध में परिवर्तन आ जाता है, उनका प्राकृतिक रूप बदल जाता है तथा पोषक तत्वों की हानि होती है। साथ ही घुन व कोड़े अपने उत्सर्जी चयापचयी पदार्थ भोजन में छोड़ जाते हैं जो कि व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। अत: इन सब हानियों को दूर करने के लिए भोजन के संग्रह की अच्छी विधियों को अपनाना बहुत आवश्यक होता है। आहार संरक्षण की कई विधियाँ हैं:
1. प्राकृतिक विधि :- इसमें खाद्य पदार्थों में सूर्य के प्रकाश में रखकर उनका परिरक्षण किया जाता है।
2. निर्जलीकरण :- खाद्य पदार्थों में से जल का अंश विलोपित कर लम्बे समय तक उन्हें परिरक्षित किया जा सकता है। इस विधि में वायु निरोधक डिब्बों अथवा बोतलों में खाद्य पदार्थ रखा जाता है।
3. फ्रिजिंग :- रेफ्रिजरेटर में खाद्य पदार्थ को रखकर उन्हें परिरक्षित किया जाता है। इसी प्रकार शीत गृहों में रखकर खाद्य पदार्थों को परिरक्षण किया जाता है।
4. हिटिंग :- खाद्य पदार्थों को बर्बाद करने वाले खमीर एवं अणुजीव उच्च तापमान पर रखने से नष्ट हो जाते हैं। इस विधि को उच्च ताप पर खौला लिया जाता है एवं इसे Air tite डिब्बों में रखा जाता है।
( 5 ) नमक, चीनी एवं खटाई द्वारा :- नमक, चीनी एवं खटाई तीनों में खमीर एवं अणुजीव खत्म करने की शक्ति होती है। जेली, मुरब्बा, आँचार आदि इसी विधि के द्वारा परिरक्षित किया जाता है।