अम्लीय वर्षा (Acidic Rain) से तात्पर्य वर्षा के पानी में अम्ल की बहुलता से है। फॉसिल्स ईंधनों (Fossil Fuels) के ज्वलन से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) एवं नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड (NO2) की मात्रा वातावरण में बढ़ती जा रही है।
वातावरण की नमी के सम्पर्क में आने पर ये गैसें क्रमशः गंधक अम्ल (H2SO4, H2SO3) एवं नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाती है। वर्षा होने पर ये पानी के साथ पृथ्वी (Earth) पर आ जाते हैं।
प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद के अनुसार, गन्धक अम्ल एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड कल-कारखानों, बिजली घरों तथा वाहनों के ईंधन के जलने से बनते हैं।
ये गैसें वर्षा के पानी को अम्लीय बना देती हैं। अम्लीय वर्षा का प्रभाव हमारे वनों, नदियों, फसलों, जलीय जीवों आदि पर पड़ता है।
इसका प्रभाव ऐतिहासिक इमारतों (Historical Building's) पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ऐतिहासिक इमारतों को अम्लीय वर्षा से स्टोन कैंसर (Stone Cancer) हो जाता है, जो ऐतिहासिक इमारतों को जर्जर अवस्था में ला देती है।
ठण्डे स्थानों (Cold Places) पर जब किसी कारणवश अम्लीय बर्फ पिघलकर आ जाती है, तो इसका pH मान अचानक ही बहुत नीचे गिर जाता है। इस घटना को एसिड शॉक (Acid Shock) कहा जाता है। इससे असंख्य जलीय प्राणी नष्ट हो जाते हैं।