प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा —
- आर्थिक परिणाम : प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित कर दिया। युद्ध के नाम पर सरकार ने भारी कर्ज लिया।
इसकी भरपाई के लिए सीमा शुल्क और अन्य करों में वृद्धि की गई। आयात शुल्क और आयकर लगाया गया। अनाज का मूल्य बढ़ गया।
कृषि की अवनति हुई। गरीबी और महँगाई बढ़ गई। पूँजीपति और साहूकार संपन्न हो गए, परंतु श्रमिकों का शोषण बढ़ गया।
- क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि : सरकार को युद्ध में व्यस्त पाकर क्रांतिकारियों ने अपनी गतिविधियाँ बढ़ा दी। बंगाल, उत्तर प्रदेश और सरहदी इलाकों में तथा विदेशों में भी क्रांतिकारी घटनाओं में तेजी आई।
इनका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति द्वारा सरकार का तख्ता पलटना था। गदर पार्टी (1919) और भारतीय स्वाधीनता समिति (1914) की स्थापना की गई।
1915 में काबुल में महेंद्र प्रताप की अध्यक्षता में भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की गई। क्रांतिकारी गतिविधियों का दमन करने के लिए सरकार ने 1919 में रॉलेट कानून पारित किया।
- राष्ट्रवादी गतिविधियों में वृद्धि : युद्ध के दौरान राष्ट्रवादियों ने स्वराज प्राप्ति और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास तेज कर दिए। 1916 में काँग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लखनऊ समझौता हुआ।
इससे हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की भावना बढ़ी। श्रीमती एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल आंदोलन का प्रचार कर गृह शासन की माँग के लिए पूरे देश में वातावरण तैयार किया।
- खिलाफत आंदोलन आरंभ हुआ : तुर्की के सुलतान (खलीफा) के साथ किए गए अन्याय के विरुद्ध भारत में खिलाफत आंदोलन आरंभ हुआ।
- संवैधानिक सुधारों की घोषणा : बढ़ते जनाक्रोश को ध्यान में रखते हुए सरकार ने संवैधानिक सुधारों की घोषणा की। 1917 में भारत सचिव एडविन मांटेग्यू ने भारत
में क्रमिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना की घोषणा की। इसी के आधार पर 1919 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड योजना (भारत सरकार अधिनियम, 1919) पारित किया गया।