सन् 1905 ई० के बंग-भंग आंदोलन में स्वदेशी और बहिष्कार की नीति से भारतीय उद्योग लाभान्वित हुए। धागा के स्थान पर कपड़ा बनाना आरंभ हुआ।
इससे वस्त्र उत्पादन में तेजी आई। सन् 1912 ई० तक सूती वस्त्र का उत्पादन दोगुना हो गया। उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयात-शुल्क में वृद्धि करे तथा देशी उद्योगों को रियायत प्रदान करे।
निर्यात में आई कमी की क्षतिपूर्ति के लिए भारतीय उद्यमियों ने सूती मिलों में वस्त्र का उत्पादन बढ़ा दिया। कपड़ा उद्योग के अतिरिक्त अन्य छोटे उद्योगों का भी विकास हुआ।