मंदी (Recession) एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यावसायिक क्रियाएँ (Business Activities) सामान्य स्तर से नीचे रहती हैं। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन एवं आय (Production and Income) की मात्रा में गिरावट आने लगती है, श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं, तथा मजदूरी की दरों में कमी हो जाती है।
विश्व स्तर पर इस प्रकार की मंदी सर्वप्रथम 1929-30 में हुई। यह मंदी संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) से आरंभ हुई जिसने विश्व के प्रायः सभी देशों को प्रभावित किया था।
व्यापार के विस्तार से विश्व के विभिन्न देश एक-दूसरे से जुड़ गए थे, जिनमें अमेरिका सबसे समृद्ध देश था। अत: इसकी आर्थिक मंदी (Financial Crisis) से प्रायः सभी देश प्रभावित हुए थे।
वर्तमान मंदी का प्रारंभ भी 2008 में अमेरिका से हुआ जिससे सेवा क्षेत्र (Service Sector) सर्वाधिक प्रभावित हुआ है।
उपभोक्ताओं की माँग कम हो जाने के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों का लाभ भी कम हो गया है, और वे श्रमिकों की छँटनी कर रहे हैं।
इस मंदी से भारत भी प्रभावित हुआ है, तथा हमारे सेवा क्षेत्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
इससे हमारे निर्यातों में कमी हुई है, निजी क्षेत्र के उद्योग एवं व्यवसाय में अस्थिरता आई है, श्रमिकों की छँटनी हुई है, और यहाँ के तकनीकी कर्मचारियों की माँग विदेशों में कम हो गई है।
परंतु, अमेरिका और यूरोप के देशों की अपेक्षा भारत इससे कम प्रभावित हुआ है। इसका प्रमुख कारण वित्तीय संस्थाओं (financial Institutions) तथा पूँजी बाजार (Capital Market) पर सरकार का प्रभावपूर्ण नियंत्रण है।