शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव। Shahrikaran Ka Paryavaran Par Prabhav
बढ़ता शहरीकरण विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देता है क्योंकि शहर अपनी मूलभूत सुविधाओं (Basic Amenities) के कारण जनसंख्य के आकर्षण का केन्द्र होते हैं।
शहरों में बढ़ती जनसंख्या के कारण स्थानीय संसाधनों (Local Resources) पर गहन दबाव पड़ता है जिससे नित नई समस्याओं का जन्म होता है।
शहरों में लोगों के निवास, उद्योगों की स्थापना तथा सड़क व अन्य सुविधाओं के कारण उपजाऊ भूमि का ही उपयोग हो रहा है।
यह प्रवृत्ति निकट भविष्य में खाद्य संकट का कारण बन सकती है। शहरी जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उद्योगों को शहरों या उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है।
ये स्थापित उद्योग शहरों में आज प्रदूष के बड़े स्रोत हैं। शहरों में परिवहन के साधनों यथा बस, कार, ट्रक आदि से निकलता धुंआ यहाँ वायु प्रदूषण का बड़ा कारण घरेलू व औद्योगिक बहिस्रावों को बिना किसी निपटान के सीधे झीलों या नदियों में डाला जाता है।
जिससे इन नगरों के समीपवर्ती झील व नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है और इससे मानव के साथ जलीय जीवों के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न हो गया है।
नगरीय क्षेत्रों में कंक्रीट की इमारतों, सड़क व अन्य आधारीय क्षेत्रों के निर्माण में सीमेन्ट व कंक्रीट की अधिकता रहती इन इमारतों को बनाने में पेड़ों, वनीय क्षेत्रों को साफ किया जाता है जिससे ये कंक्रीट संरचना सौर्य ताप का अधिक अवशोषण करती हैं।
नगरीय क्षेत्रों (Urban Areas) में प्रदूषण आदि के कारण नगरीय धूम कोहरा के निर्माण से नगरीय क्षेत्र का तापमान आसपास के क्षेत्र से 5० से 8° C तक अधिक होता है
तथा नगर उष्मा द्वीप के रूप में कार्य करने लगता है। इससे किसी नगर में विशिष्ट जलवायु विकसित होती है जो यहाँ की मौसमी जलवायवीय व पर्यावरणीय दशाओं को प्रभावित करती है।