1968 में अमेरिका व सेवियत संघ ने संधि की थी जिसे 2 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने अपना लिया। यह संधि 25 वर्ष तक चल सकती थी लेकिन 1995 में इसकी अवधि अनिश्चितकाल को बढ़ा दी गई। इसके अनुसार पांच बड़ी परमाणु शक्तियां (अमेरिका, ब्रिटेन फ्रांस ,रूसी ,संघ व चीन) आपस में परमाणु ऊर्जा व तकनीक का लेनदेन कर सकती है। लेकिन किसी अन्य देश के साथ ऐसा लेन-देन नहीं किया जा सकता। यदि कोई अन्य देश किसी परमाणु शक्ति से परमाणु ऊर्जा या तकनीकी लेता है तो उनका प्रयोग केवल शांतिसेवियतपूर्ण कार्यों के लिए किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय अनुशक्ति अभिकरण(international Atomic Energy Agency) उसका निरीक्षण करेगा। भारत ने इस संधि को विभेदकारी बताया और उसने इस पर हस्तार नहीं किए हैं।