उत्तर : रदरफोर्ड ने प्रयोग के लिए उन्होंने अल्फा- कण और पन्नी का उपयोग किया। सोने की यह पन्नी लगभग 1000 परमाणुओं के बराबर मोटी थी | अल्फा - कणों का उपयोग इसलिए लिया कि यह द्विआवेशित हीलियम कण होते हैं अर्थात् ये धन आवेशित होते हैं और इसका द्रव्यमान 4u होता है। इसलिए तीव्र गतिमान अल्फा - कणों में पर्याप्त ऊर्जा होती है। सन् 1911 में सोने के पतले पत्तरों (0.00004 cm मोटी) पर अल्फा- कणों का आघात (प्रहार) कराया तो पाया कि
(i) तेज गति से चल रहे अधिकांश अल्फा- कण सोने के पतले पत्तरों से सीधे पार हो जाते हैं।
(ii) कुछ अल्फा-कण अपने पथ से विचलित हो जाते हैं, जिनमें कुछ बड़े कोणों से तथा कुछ छोटे कोणों से विचलित हो जाते हैं।
(iii) कुछ x-कण (12000 में एक) अपने पथ पर वापस लौट आते हैं।
निष्कर्ष :-
(i) परमाणु का अधिकांश भाग खाली है, क्योंकि अधिकांश अल्फा- कण बिना विचलित हुए सोने के पतले पत्तरों से सीधे पार हो जाते हैं।
(ii) बहुत कम अल्फा-कण अपने मार्ग से विचलित होते हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि परमाणु में धनावेशित भाग बहुत कम है।
(iii) बहुत कम अल्फा-कण अपने पथ पर वापस लौट आते हैं, इससे यह संकेत मिलता है कि सोने के परमाणु का पूर्ण धनावेशित भाग और द्रव्यमान, परमाणु के अंदर बहुत कम आयतन में सीमित है।
(iv) नाभिक की त्रिज्या, परमाणु की त्रिज्या से लगभग 10⁵ गुना छोटी है। यदि परमाणु का आकार क्रिकेट के एक स्टेडियम जितना हो तो नाभिक का आकार स्टेडियम के केन्द्र में बैठी एक मक्खी के जितना होगा।