विश्व में जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए। Vishva Mein Jansankhya Ki Vriddhi Ki Pravritti Ka Varnan Kijiye
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विश्व में जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए। Vishva Mein Jansankhya Ki Vriddhi Ki Pravritti Ka Varnan Kijiye

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एक निश्चित अवधि में किसी क्षेत्र विशेष में निवासियों की संख्या में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं। संसार की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है।

1650 ई० से विश्व की जनसंख्या का लिखित प्रमाण मिलता है, अत: इसे विश्व जनसंख्या वृद्धि का विभाजक माना जाता है।

1650 ई० में विश्व की जनसंख्या 50 करोड़ थी, जो बढ़कर 2010 ई० में 684 करोड़ हो गई। जनसंख्या की वृद्धि की दर में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।

विश्व की कुल जनसंख्या के दुगुनी होने की अवधि के आँकड़ें से भी यह प्रतीत होता है कि आरंभ में जनसंख्या के दुगुनी होने की अवधि लंबी थी, किन्तु अब यह उत्तरोत्तर छोटी होती जा रही है।

उदाहरणस्वरूप— 1650 ई० में विश्व की जनसंख्या 50 करोड़ थी, जो 200 वर्षों में 1850 में 100 करोड़ हो गई ।

पुनः यह 80 वर्षों में 1930 ई० में 200 करोड़ और केवल 45 वर्षों में 1975 ई० में 400 करोड़ हो गई।

यह उल्लेखनीय है कि विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों की जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत कम है और कुछ विकसित देशों में तो जनसंख्या घट रही है।

जनसंख्या की सर्वाधिक वृद्धि अफ्रीकी देशों में हो रही है। रूस, जर्मनी, स्पेन, इटली इत्यादि देशों की जनसंख्या की वृद्धि दर ऋणात्मक है और इनकी कुल जनसंख्या ही घट रही है।

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