'लाल पान की बेगम' एक आंचलिक कहानी है। इसमें ग्रामीण जीवन के अनेक रंग-रेशे को गहरी संवेदना के साथ चित्रित किया गया है। गाँव में लोग किस तरह परस्पर ईष्या-द्वेष, राग-विराग, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद केगहरे आवर्त में बँधे होते हैं। इसका अंकन बिरजू की माँ और गाँव के लोगों के व्यवहार के माध्यम से किया गया है।
बिरजू की माँ कुछ क्रोधी स्वभाव की है। क्रोध से उसका चेहरा लाल हो जाता है। इसीलिए जंगी की पतोहू उसे लाल पान की बेगम कहती है। ऐसी बात नहीं कि बिरजू की माँ हमेशा क्रोध में ही रहती है गरीबी की दुख-दर्दभरी जिन्दगी के बीच भी मनोरंजन प्राप्त करना, आनन्दपूर्ण जीवन जीना उसका लक्ष्य है।
प्रस्तुत कहानी चूँकि बिरजू की माँ के आस-पास ही घूमती है, अतः इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक 'लाल पान की बेगम' सर्वथा सार्थक और उपयुक्त कही जा सकती है।