अफ्रीका और एशिया में उपनिवेशवाद पर नजर डालें। Africa Aur Asia Mein Upniveshvad Par Najar Dalen.
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अफ्रीका और एशिया में उपनिवेशवाद पर नजर डालें। Africa Aur Asia Mein Upniveshvad Par Najar Dalen.

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अफ्रीका और एशिया में उपनिवेशवाद (Colonialism in Africa and Asia) : व्यापार में विकास के साथ ही औपनिवेशिक गतिविधियाँ भी बढ़ीं। यूरोपीय उपनिवेशवाद के शिकार अफ्रीका और एशिया के देश बने। उपनिवेशों की स्थापना सैनिक विजयों द्वारा की गई। आरंभ में यूरोपीय व्यापारी इन महादेशों में व्यापार के उद्देश्य से गए और वहाँ अपनी व्यापारिक कंपनियाँ स्थापित की। 

उदाहरण के लिए, 16वीं शताब्दी से पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और अँगरेज व्यापार करने के लिए भारत आए, परंतु धीरे-धीरे इन लोगों ने अपना राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ाना आरंभ किया। 

इस प्रक्रिया में इन यूरोपीय कंपनियों में प्रतिद्वंद्विता भी हुई। इसमें अंततः अँगरेज विजयी हुए। उन लोगों ने भारत पर अपना राजनीतिक एवं आर्थिक (व्यापारिक) वर्चस्व स्थापित कर लिया। 

अफ्रीका में भी यूरोपियनों ने विजय अभियान किया। सर हेनरी मॉर्टन स्टैनली ने मध्य अफ्रीका का दौरा कर वहाँ का भौगोलिक अन्वेषण किया। उन्होंने अफ्रीका के विभिन्न भागों के नक्शे भी बनाए। इससे उपनिवेशवादियों को अफ्रीका की विजय में पर्याप्त सहायता मिली। अफ्रीका पर विजय प्राप्त करने के लिए यूरोपीय देशों में प्रतिस्पर्द्धा हुई। 

प्रत्येक शक्तिशाली यूरोपीय देश ने अफ्रीका में अपना प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लिया। 1885 के वर्लिन सम्मेलन द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों ने अफ्रीका का आपसी बँटवारा कर लिया। वहाँ के आर्थिक संसाधनों को अपने अधीन कर उपनिवेशकों ने संपूर्ण अफ्रीका पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। 

औपनिवेशिक प्रसार में ब्रिटेन और फ्रांस अन्य राष्ट्रों से बहुत आगे थे। 19वीं शताब्दी के अंत तक ब्रिटेन और फ्रांस सबसे बड़ी औपनिवेशिक शक्तियाँ थे। बेल्जियम और जर्मनी उपनिवेशवाद की दौड़ में बाद में शामिल हुए। 

1890 के दशक के अंत तक स्पेन के कुछ उपनिवेशों पर अधिकार कर अमेरिका भी औपनिवेशिक शक्ति बन गया। उपनिवेशवाद के दो परिणाम हुए। पहला, उपनिवेश विश्व अर्थव्यवस्था से व्यापार के माध्यम से जुड़ गए। दूसरा, उपनिवेशों का आर्थिक दोहन किया गया। 

साथ-साथ उपनिवेशों के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर भी अपना वर्चस्व स्थापित कर औपनिवेशिक शासकों ने वहाँ अपनी व्यवस्था स्थापित की। इससे उपनिवेशवासियों का जीवन कष्टप्रद बन गया। उनकी स्वतंत्रता समाप्त हो गई। आर्थिक दोहन से उपनिवेशों में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ गई।

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