ईसा पूर्व 1300 वर्ष कणाद ऋषि ने बताया कि पदार्थ अत्यंत छोटे-छोटे कणों में मिलकर बना होता है। सन् 1808 में ब्रिटेन के प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री जान डाल्टन ने पदार्थ की संरचना के संदर्भ में बताया कि पदार्थ अत्यंत छोटे-छोटे अविभाज्य (Indivisible) कणों से मिलकर बना होता है, जिन्हें परमाणु कहते हैं। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जे० जे० थामसन व रदरफोर्ड ने पदार्थ की संरचना के गहन अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि परमाणु अविभाज्य नहीं है, बल्कि यह छोटे-छोटे आवेशित कणों से मिलकर बना होता है। आधुनिक अभिधारणा के अनुसार परमाणु धनावेशित प्रोट्रॉनों, ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों व उदासीन न्यूट्रॉनों से मिलकर बना होता है। प्रोट्रॉन व इलेक्ट्रॉन पर आवेश ठीक एक दूसरे के बराबर व विपरीत प्रकार का होता है। अतः परमाणु विद्युत उदासीन होता है। परमाणु के केन्द्र में एक नाभिक होता है, जिसमें धनावेशित प्रोट्रॉन व उदासीन न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं। ऋणावेशित कण इलेक्ट्रान नाभिक के चारों ओर बन्द कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में केन्द्रित रहता है। नाभिक में उपस्थित प्रोट्रॉनों की संख्या को परमाणु क्रमांक (Atomic Number) व प्रोट्रॉनों तथा न्यूट्रॉनों की संख्या के योग को परमाणु भार (Atomic weight) कहते हैं। इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर विभिन्न बन्द कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं। इन कक्षाओं को 1 2 3 4 या K. L. M.N आदि से प्रदर्शित करते हैं। किसी भी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2n2 से अधिक नहीं हो सकती. In कक्षा संख्या है अर्थात् पहली कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन, दूसरी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन, तीसरी कक्षा में 18 इलेक्ट्रॉन होते हैं।