सामाजिक माहौल के महत्व पर सबसे पहले बाल मनोवैज्ञानिक वायगोत्स्की ने जोर दिया था। उनके तर्क का यह निष्कर्ष था कि बच्ची अपने अनुभवों के संदर्भ में सीखती है, और उन्हीं पर आगे अपनी समझ बढ़ाती है। जन्म से ही वह इन सामाजिक प्रभावों में डूबी रहती है। वह अपने कपड़ों, खानपान की आदतों, नहाने के तरीके से तथा सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल के अन्य पहलुओं से सीखती है। उसकी भाषा एक औजार होती है, जिसके माध्यम से वह अपने विचारों को व्यवस्थित करती है और उसे दूसरों तक पहुँचाती है। शिक्षक होने के नाते हमें चाहिए कि हम हर बच्ची के उस अनुभव का उपयोग करें, जो वह अपने माहौल के साथ लेकर आती है। हमें उनके अनुभवों का उपयोग करके आगे बढ़ना चाहिए ।