सामाजिक न्याय का अर्थ यह है कि किसी देश में नागरिकों में जन्म, जाति, नस्ल आदि के आधार पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाए। जिस समाज में नागरिकों को विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, वहाँ सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती। सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएँ अनिवार्य हैं
(क) धन का उचित वितरण (Just Distribution of Wealth)- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय.... प्रतिष्ठा व अवसर की समानता प्राप्त करने का वचन दिया गया है। संविधान के अध्याय IV में नीति-निर्देशक तत्वों में उत्पादन के साधनों और उत्पादों को कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथों में न देकर उनके उचित वितरण पर बल दिया गया है, जो सामाजिक न्याय की प्राप्ति का एक उत्तम साधन माना जाता है। ( ख ) काम करने का अधिकार (Right to Work)- बेरोजगारी सामाजिक न्याय प्राप्ति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। जब तक बेरोजगारी को समाप्त नहीं किया जाता तब तक किसी देश में सामाजिक न्याय की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसलिए सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए बेरोजगारी को समाप्त करना आवश्यक है तथा यह भी अनिवार्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता व आवश्यकता के अनुरूप काम दिया जाए, तभी हम सामाजिक न्याय की कल्पना कर पाएँगे।
(ग) जाति प्रथा का अंत (End of Caste System ) - जाति प्रथा समाज में अभिशाप है। यह सामाजिक न्याय के मार्ग में एक अवरोधक का कार्य करती है। आज समाज अनेक जातियों में विभाजित है जो सामाजिक न्याय के लिए घातक है। सामाजिक न्याय तभी प्राप्त हो सकता है, जब जातीय भेदभाव को समाप्त कर दिया जाए तथा समाज में जातीय भेदभाव न रहें। जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए भारतीय संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 17 के अंतर्गत इसे अवैध घोषित किया है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को जातिसूचक शब्दों से संबोधित नहीं करेगा।
(घ) विशेषाधिकारों की समाप्ति (Abolition of Special Rights)- सभी नागरिकों को सामाजिक न्याय तभी प्राप्त हो सकता है जब समाज में किसी व्यक्ति या समूह को किसी भी प्रकार के विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होंगे। यदि किसी विशेष वर्ग, जाति या समूह को कोई विशेषाधिकार प्राप्त है तो वहाँ सामाजिक न्याय संभव नहीं हो पाएगा। अतः सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि विशेषाधिकार नहीं हो । यदि है तो उन्हें समाप्त कर देना चाहिए। भारत के संविधान में किसी भी व्यक्ति या समूह को जन्म अथवा जाति के आधार पर किसी विशेषाधिकार का प्रावधान नहीं है ।
(ङ) श्रमिकों के हितों की सुरक्षा (Protection of the Interest of the Worker)सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए एक अन्य आवश्यक शर्त यह भी है कि श्रमिकों के हितों की अनदेखी नहीं की जाए। इसका अर्थ यह है कि श्रमिक वर्ग की सुरक्षा अवश्य की जाए अन्यथा समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग साधनों से वंचित रह जाएगा और सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकेगी। इसके लिए राज्य या सरकार मजदूरों के वेतन, कार्य, काम करने का समय व सुविधा की उचित व्यवस्था करेगी। जब कोई सरकार श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करती है तो हम यह कह सकते हैं कि अमुक सरकार सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए प्रयत्नशील है।