भाषा शिक्षण में जब बालक अध्यापक के उच्चारण का अनुकरण करता है, तब इस विधि को अनुकरण विधि कहते हैं पहले अध्यापक एक शब्द कहते हैं, फिर बच्चे उसका अनुकरण करते हुए दोहराते हैं। अनुकरण द्वारा बालकों के उच्चारण शुद्ध व स्पष्ट होते हैं तथा बालकों को प्रवाहपूर्ण रीति से पढ़ने का तरीका मालूम होता है।
बालक भाषा में उतार-चढ़ाव का अभ्यास करते हैं एवं इस अभ्यास के द्वारा पाठ पढ़ते समय आरोह-अवराह के साथ पढ़ने में समर्थता प्राप्त कर लेते हैं। अभ्यास के द्वारा सीखा गया कौशल अपेक्षाकृत स्थायी होता है।भाषा एक कला है विज्ञान नहीं। भाषा में वैज्ञानिक पक्ष अवश्य है, परंतु कलात्मक पक्ष, वैज्ञानिक पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण है।
विज्ञान समझने की वस्तु है, कला अभ्यास की। प्रत्येक कला को ग्रहण करने के लिए अभ्यास की तीव्र आवश्यकता है निरंतर अभ्यास से कठिन से कठिन कार्य भी साध्य हो जाता है। भाषा ज्ञान में अधिक समय, परिश्रम, रूचि व अभ्यास की आवश्यकता होती है।