भाषा अनुकरण से बच्चे सीखते हैं। अर्जन से बड़े ही भाषा से अनुकरण की कोई मात्रा नहीं होती, कोई अंश नहीं होता शुद्ध उच्चारण का अनुकरण तो बड़ों को भी करना पड़ता है। यह बात और है कि बड़े के अनुकरण में परिश्रम का योग रहता है। बच्चा पानी के लिए पी, गाड़ी के लिए पी-पी शब्द का उच्चारण करता है।
बच्चे अस्पष्ट उच्चारण करते-करते भाषा को अनुकरण से ही विकसित कर लेते हैं—
देखा जाता है, कि बच्चों की भाषा में पहले क्रिया नहीं संज्ञा आती है, क्रिया का विकास बाद में होता है। अनुकरण अर्जित का ही किया जाता है। मातृभाषा अनुकरण से आती है, मानक भाषा अर्जन से। अर्जन में समय लगता है। किसी भाषा को अधिगम करना हँसी-खेल नहीं है। परिश्रम पूर्वक भाषा को अधिगम करना ही भाषा का अर्जन कहा जाता है।