कृषि वानिकी में उपयोगी जाति के वृक्षों का चयन भी महत्वपूर्ण है। इनके चयन में ये बिन्दु महत्वपूर्ण हैं -
(1) वृक्षों का ऊपरी भाग अधिक फैला तथा सघन पत्तियों वाला न हो। ऐसा हो जिसमें होकर प्रकाश प्रवेश कर सके।
(2) गिरने वाली पत्तियाँ मिट्टी में उर्वरापन बढ़ाने वाली होनी चाहिए।
(3) वृक्षों में शाखाएँ कम हों।
(4) वृक्षों की आकारिकी ऐसी हो जो प्रकाश करे तथा पोषण की प्रतिस्पर्द्धा को कम करे।
(5) इनकी जड़ें ऐसी हों जो मिट्टी में हेर-फेर करती रहें।
कृषि वानिकी को कुछ उद्योगों से प्रोत्साहन मिला है। उत्तर प्रदेश से दियासलाई उद्योग ने पाप्लर वृक्ष के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया है।
कृषि वानिकी को लोकप्रिय बनाने के प्रयास करने चाहिए। इस क्षेत्र में शोध कार्य को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
शिक्षा तथा प्रेरणा द्वारा इसको कृषकों में लोकप्रिय बनाना आवश्यक है। वनों की संरचना प्रबन्ध तथा उनके उत्पादों का उचित उपयोग वानिकी कहलाता है। स्पष्ट है कि वानिकी के अन्तर्गत वनों की व्यवस्था, उचित देखभाल और उनकी साज-सँवार सभी सम्मिलित है। वानिकी को अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य की दृष्टि से अलग-अलग नाम दे दिये गये हैं; जैसे- कृषि वानिकी, उद्यान वानिकी, ग्रामीण वानिकी, नगरीय वानिकी। इसी प्रकार यह एक प्रकार से सामाजिक वानिकी है जिसकी आजकल अधिक चर्चा है। सामाजिक वानिकी समाज की सेवा के उद्देश्य से किये जाने वाले वनीकरण के कार्य हैं। यदि भारतीय इतिहास को देखें तो विदित होगा कि यहाँ के लिए सामाजिक वानिकी की विचारधारा कोई नई बात नहीं है। यह भारतीय ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई एक अति प्राचीन विधि है। यह ऐसी विधि है जिसके द्वारा जनता की पशु चारे, ईंधन के लिए लकड़ी तथा श्वास के लिए ऑक्सीजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। सामाजिक वानिकी में लोगों ने पौधारोपण की उत्प्रेरणा देकर वनों के साथ एक भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य किया है।