आर्थिक एकीकरण(Economic Integration) शब्द का प्रयोग उन विभिन्न आयामों को दिखाने के लिए किया जाता है आर्थिक एकीकरण के अर्न्तगत विभिन्न देशों के मध्य व्यापार में आने वाली बाधाएं खत्म हो रही है। वर्तमान समय में स्वतंत्र देशों के मध्य सर्वाधिक एकीकृत अर्थव्यवस्था युरोपीय यूनियन है आर्थिक एकीकरण की प्रकिया को मुख्य रूप से तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है-
1. वरीयता प्राप्त व्यापारिक क्षेत्र:- वरीयता प्राप्त व्यापारिक क्षेत्र से हमारा अभिप्राय ऐसे क्षेत्र से है जिसके अर्त्तगत सभी सहयोगी देशों के कुछ उत्पादों को वरीयतम पहुँच प्रदान की जाती है इसके लिए कार्य प्रशुल्कों को घटाया जाता है। लेकिन इसे पूर्णतः समाप्त नहीं किया जाता है। वरीयतम व्यापार क्षेत्र की स्थापना व्यापार समझौते के माध्यम से की जा सकती है।
2. मुक्त व्यापार क्षेत्र:- मुक्त व्यापार क्षेत्र से अभिप्राय व्यापार सीमाओं के आर-पार होने से है। मुक्त व्यापार के लिए सीमा पर लगने वाले करों पर कमी लाकर व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है।
3. कस्टम यूनियन:- यह एक प्रकार का व्यापारिक खंड है जो मुक्त व्यापार क्षेत्र होने के साथ एक सामान्य बाध्य प्रशुल्क नीति भी रखता है। सहभागी देश समान विदेशी व्यापार नीति की स्थापना करते है परंतु कई मामलों में ये देश अलग प्रकार के आयात कोटा का प्रयोग करते है। सीमा शुल्क संघ को बनाने का उद्देश्य आर्थिक क्षमता को बढ़ाना है इसका निर्माण व्यापार संधि के द्वारा होता है ।
4. साझा बाजार:- साझा बाजार से अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें सहयोगी राष्ट्र एक दूसरे के बाजारों का प्रयोग कर सकते है। साझा बाजार नीति का उद्देश्य पूंजी, श्रम, वस्तुओं एवं सेवाओं का आवागमन आसान बनाना है उदाहरण के लिए युरोपीय संघ ने NAFTA और सार्क ने SAFTA का निर्माण किया है।
5. आर्थिक एवं मौद्रिक संघ:- यह एक ऐसी व्यापारिक प्रखंड है जिसमें एकल बाजार होने के साथ-साथ साझा मुद्रा भी होती है। यह आर्थिक एकीकरण का एक महत्वपूर्ण चरण है।
6. पूर्ण आर्थिक एकीकरण:- यह आर्थिक एकीकरण का अंतिम चरण है पूर्ण आर्थिक एकीकरण पश्चात् नीतियों पर नियंत्रण नाम मात्र ही होता है। इसमें पूर्ण मौद्रिक संघ, समान राजकोषीय नीतियां, ये सभी पूर्ण आर्थिक एकीकरण वाले देशों में समान होती है।
आर्थिक एकीकरण के लाभ
1. व्यापार सृजन:-
a. सदस्य देशों के पास सबसे अच्छी और गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं के चयन की सुविधा होती है।
b. व्यापार में आने वाली बाधाए समाप्त हो जाती है सदस्य देशों के मध्य व्यापार को बढ़ावा मिलता है जिससे अधिक मुद्रा की बचत होती है।
2. वृहत् सर्वानुमति:- विश्व व्यापार संगठन में सदस्य देशों की संख्या अधिक है जिसके कारण सबको सहमत कर पाना मुश्किल है परंतु क्षेत्रीय स्तर के संगठन में सर्वानुमति प्राप्त करना आसान होता है जैसे सार्क, आसियान, युरोपिय संघ आदि।
3. रानीतिक सहयोग:- आर्थिक एकीकरण के फलस्वरूप विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक सहयोग को बढ़वा मिला है तथा राजनीतिक अर्थिरता एवं संघर्ष से निपटने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई है।
4. रोजगार के अवसर:- आर्थिक एकीकरण स्वतंत्रता व्यापार को बढ़ावा देता है तथा विदेशी निवेश बढ़ने लगता है जिसके फलस्वरूप अत्यधिक मात्रा में रोजगार के अवसर बढ़े है। लोग विभिन्न देशों में जाकर अपनी सेवाएं देने लगे जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है और आय में वृद्धि होने के कारण जीवन स्तर में सुधार होने लगा है।
आर्थिक एकीकरण की हानियां:-
1. व्यापार प्रखंड का निर्माण:- आर्थिक एकीकरण के फलस्वरूप सदस्य राष्ट्रों को तो इसका लाभ प्राप्त हुआ है परंतु जो देश इसके सदस्य नहीं बन पाये है उनके विकास में यह एक बाधा के रूप में है।
2. व्यापार विचलन:- व्यापार विचलन से अभिप्राय है कि एक देश ने कम लागत पर उत्पादन करने वाले एक गैर सदस्य देश से व्यापार बन्द कर दिया हो तथा दपने सदस्य देश जिसकी उत्पादन लागत ज्यादा है से व्यापार करना आरंभ कर दिया हो।
3. राष्ट्रीय संप्रभुसत्ता:- आर्थिक एकीकरण के कारण देशों की प्रभुसत्ता प्रभावित होने लगी है तथा अब राष्ट्र स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाते और सभी सदस्य देशों को अन्तराष्ट्रीय नियमों के अनुसार चलना पड़ता है जिससे उनके घरेलू मामले प्रभावित होते तथा अब राष्ट्र स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाते।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में असमानता एवं अस्थिरता
1. वैश्विक अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ-साथ देशों में आर्थिक विकास के साथ साथ रोजगार के नए अवसर पैआ हुए है परंतु वैश्विक श्रमबल में चार गुना वृद्धि हुई है और अकुशल श्रमिकों की मांग बढ़ती जा रहीं है।
2. वैश्विक अर्थव्यवस्था का एकीकरण होने के कारण USA तथा युरोप में अनिश्चिता बढ़ती जा रहीं है तथा आय की असमानता में वृद्धि हुई है अर्थात् अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होते जा रहे है।
3. इस व्यवस्था ने गरीब देशों की स्थिति को और खराब कर दिया है तथा इन देशों के बाजार और अर्थव्यवस्था पर विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का अधिकार हो गया है।